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सूत्रकृतांग
दिसूत्र में बताया गया है कि सूत्रकृतांग में लोक, अलोक, लोकालोक, जीव, अजीव, स्वसमय एवं परसमय का निरूपण है तथा क्रियावादी आदि तीन सौ तिरसठ पाखण्डियों अर्थात् अन्य मतावलम्बियों की चर्चा है ।
राजवार्तिक के अनुसार सूत्रकृतांग में ज्ञान, विनय, कल्प्य तथा अकल्प्य का विवेचन है; छेदोपस्थापना, व्यवहारधर्म एवं क्रियाओं का प्रकरण है ।
धवला के अनुसार सूत्रकृतांग का विषयनिरूपण राजवार्तिक के ही समान है । इसमें स्वसमय एवं परसमय का विशेष उल्लेख है ।
जयधवला में कहा गया है कि सूत्रकृतांग में स्वसमय, परसमय, स्त्रीपरिणाम, क्लीबता, अस्पष्टता - मन की बातों की अस्पष्टता, कामावेश, विभ्रम, आस्फालनसुख - स्त्री संग का सुख, पुंस्कामिता - पुरुषेच्छा आदि की चर्चा है ।
अंगपत्ति में बताया है कि सूत्रकृताग में ज्ञान, विनय, निर्विघ्न अध्ययन, सर्वसत् क्रिया, प्रज्ञापना, सुकथा, कल्प्य व्यवहार, धर्मक्रिया, छेदोपस्थापन, यतिसमय, परसमय एवं क्रियाभेद का निरूपण है ।
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प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी नामक पुस्तक में ' तेवीसाए सुद्दयडऽज्झाणेसु' ऐसा उल्लेख है जिसका अर्थ है कि सूत्रकृत के तेईस अध्ययन हैं । इस पाठ की प्रभाचन्द्रीय वृत्ति में इन तेईस अध्ययनों के नाम भी गिनाये हैं । ये नाम इस प्रकार हैं : १. समय, २. वैतालीय, ३. उपसर्ग, ४. स्त्रीपरिणाम, ५. नरक, ६. वीरस्तुति, ७. कुशीलपरिभाषा, ८. वीर्य, ९. धर्म, १० अग्र, ११. मार्ग, १२. समवसरण, १३. त्रिकाल ग्रन्थहिद (?), १४. आत्मा, १५. तदित्यगाथा ( ? ), १६. पुण्डरीक, १७. क्रियास्थान, १८. आहारकपरिणाम, १९. प्रत्याख्यान, २० अनगारगुणकीर्ति, २१. श्रुत, २२. अर्थ २३. नालंदा । इस प्रकार अचेलक परम्परा में भी सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययन मान्य हैं । इन नामों व सचेलक परम्परा के टीकाग्रंथ आवश्यकवृत्ति (पृ. ६५१ व ६५८ ) में उपलब्ध नामों में थोड़ा-सा अन्तर है जो नगण्य है ।
अचेलक परम्परा में इस अंग के प्राकृत में तीन नाम मिलते हैं : सुद्दयड, सूदयड और सूदयद । इनमें प्रयुक्त 'सुद्द ' अथवा 'सूद' शब्द 'सूत्र' का एवं 'यड' अथवा 'यद' शब्द 'कृत' का सूचक है । इस अंग के प्राकृत नामों का संस्कृत रूपान्तर 'सूत्रकृत' ही प्रसिद्ध है । पूज्यपाद स्वामी से लेकर श्रुतसागर तक के सभी तत्त्वार्थवृत्तिकारों ने 'सूत्रकृत' नाम का ही उल्लेख किया है । सचेलक परम्परा में इसके लिए सूतगड, सूयगड और सुत्तकड - ये तीन प्राकृत नाम प्रसिद्ध हैं । इनका संस्कृत रूपान्तर भी हरिभद्र आदि आचार्यों ने 'सूत्रकृत' ही दिया
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