________________
चतुर्थ प्रकरण
सूत्रकृतांग समवायांग सूत्र में सूत्रकृतांग' का परिचय देते हुए कहा गया है कि इसमें स्वसमय-स्वमत, परसमय-परमत, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर निर्जरा, बंध, मोक्ष आदि तत्त्वों के विषय में निर्देश है, नवदीक्षितों के लिए बोधवचन हैं, एक सौ अस्सी क्रियावादी मतों, चौरासी अक्रियावादी मतों, सड़सठ अज्ञानवादी मतों व बत्तीस विनयवादी मतों इस प्रकार सब मिलाकर तीन सौ तिरसठ अन्य दृष्टियों अर्थात अन्य यूथिक मतों की चर्चा है। इसमें सदृष्टान्त वणित सूत्रार्थ मोक्षमार्ग के प्रकाशक हैं । सूत्रकृतांग के इस सामान्य विषयवर्णन के साथ ही साथ समवायांग ( तेइसवें समवाय ) में इसके तेईस अध्ययनों के विशेष नामों का भी उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार श्रमणसूत्र में भी इस अंग के तेईस अध्ययनों का निर्देश है-प्रथम श्रुतस्कन्ध में सोलह व द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सात । इसमें अध्ययनों के नाम नहीं दिये गये हैं।
१. (अ) नियुक्ति व शीलांक की टीका के साथ-आगमोदय समिति, बम्बई
___ सन् १९१७; गोडीपार्श्व जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, सन् १९५० । (आ) शीलांक, हर्षकुल व पार्वचन्द्र की टीकाओं के साथ-धनपतसिंह
कलकत्ता, वि० सं० १९३६ । (इ) अंग्रेजी अनुवाद-H. Jacobi, S. B. E. Series, Vol. 45.
Oxford, 1895. (ई) हिन्दी छायानुवाद-गोपालदास जीवाभाई पटेल, श्वे० स्था० जैन
कॉन्फरेंस, बम्बई, सन् १९३८ । (उ) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलक ऋषि, हैदराबाद, पी० सं० २४४६ । (ऊ) नियुक्तिसहित-पी० एल० वैद्य, पूना, सन् १९२८ । (ऋ) गुजराती छायानुवाद-गोपालदास जीवाभाई पटेल, पूंजाभाई जैन
ग्रन्थमाला, अहमदाबाद । (ए) प्रथम श्रुतस्कन्ध शीलांककृत टीका व उसके हिन्दी अनुवाद के साथ
अम्बिकादत्त ओझा, महावीर जैन ज्ञानोदय सोसायटी, राजकोट, वि० सं० १९९३-१९९५; द्वितीय श्रुतस्कन्ध हिन्दी अनुवादसहित-अम्बिकादत्त ओझा, बेंगलोर, वि० सं० १९९७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org