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सूत्रकृतांग
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रूप
भाषा में प्रभाषित अर्थात् कहा गया है। इस प्रकार नियुक्तिकार ने ग्रंथकार के किसी विशेष व्यक्ति का नाम नहीं बताया है । वक्ता के रूप में जिनवर का तथा श्रोता के रूप गणधरों का निर्देश किया है । चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने अपनी पूर्व परम्परा का अनुसरण करते हुए वक्ता के रूप में सुधर्मा का एवं श्रोता के रूप में जंबू का नामोल्लेख किया है । इस ग्रन्थ में बुद्ध के मत के उल्लेख के साथ बुद्ध का नाम भी स्पष्ट आता है एवं बुद्धोपदिष्ट एक रूपककथा का भी अत्यन्त स्पष्ट उल्लेख है । इससे कल्पना की जा सकती है कि जब बौद्ध पिटकों के संकलन के लिए संगीतिकाएं हुईं, उनकी वाचना निश्चित हुई तथा बुद्ध के विचार लिपिबद्ध हुए वह काल इस सूत्र के निर्माण का काल रहा होगा । आचारांग में भी अन्यमतों का निर्देश है किन्तु एतद्विषयक जैसा उल्लेख सूत्रकृतांग में है वैसा आचारांग में नहीं । सूत्रकृतांग में इन मत-मतान्तरों का निरसन 'ये मत मिथ्या हैं, ये मतत्रवर्तक आरम्भी हैं, प्रमादी हैं, विषयासक्त हैं' इत्यादि शब्दों द्वारा किया गया है । इसके लिए किसो विशेष प्रकार की तर्कशैली का प्रयोग प्रायः नहीं है ।
नियतिवाद तथा आजीविक सम्प्रदाय :
अंगुत्तरनिकाय आदि में
सूत्रकृतांग प्रथम अध्ययन के द्वितीय उद्देशक के प्रारम्भ में नियतिवाद का उल्लेख है । वहाँ मूल में इस मत के पुरस्कर्ता गोशालक का कहीं भी नाम नहीं है । उपासकदशा नामक सप्तम अंग में गोशालक तथा उसके मत नियतिवाद का स्पष्ट उल्लेख है । उसमें बताया गया है कि गोशालक के मतानुसार बल, वीर्य, उत्थान, कर्म आदि कुछ नहीं है । सब भाव सर्वदा के लिए नियत हैं । बौद्ध ग्रन्थ दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुत्तनिकाय, तथा जैन ग्रन्थ व्याख्याप्रज्ञप्ति, स्थानांग, समवायांग, औपपातिक आदि में भी आजीविक मत प्रवर्तक नियतिवादी गोशालक का ( नामपूर्वक अथवा नामरहित ) वर्णन उपलब्ध है । इस वर्णन का सार यह है कि गोशालक ने एक विशिष्ट पंथप्रवर्तक के रूप से अच्छी ख्याति प्राप्त की थी । वह विशेषतया श्रावस्ती की अपनी अनुयायिनी हाला नामक कुम्हारिन के यहाँ इसी नगरी के आजीविक मठ में रहता था । गोशालक का आजीविक सम्प्रदाय राजमान्य भी हुआ । प्रियदर्शी राजा अशोक एवं उसके उत्तराधिकारी महाराजा दशरथ ने आजीविक सम्प्रदाय को दान दिया था, ऐसा उल्लेख शिलालेखों में आज मी उपलब्ध है । बौद्ध ग्रन्थ
१. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गा. १८-१९.
२. देखिये - सद्दालपुत्त एवं कुंडकोलियसम्बन्धी प्रकरण.
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