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तृतीय प्रकरण अंगग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग
अङ्गों के बाह्य परिचय में अङ्गग्रन्थों की शैली, भाषा, प्रकरण-क्रम तथा विषय-विवेचन की चर्चा की गई। अंतरंग परिचय में निम्नोक्त पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा :
(१) अचेलक व सचेलक दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में निर्दिष्ट अङ्गों के विषयों का उल्लेख व उनकी वर्तमान विषयों के साथ तुलना ।
( २ ) अङ्गों के मुख्य नामों तथा उनके अध्ययनों के नामों की चर्चा । (३) पाठान्तरों, वाचनाभेदों तथा छन्दों के विषय में निर्देश । (४) अङ्गों में उपलब्ध उपोद्घात द्वारा उनके कर्तृत्व का विचार ।
( ५ ) अङ्गों में आने वाले कुछ आलापकों को चूर्णि, वृत्ति इत्यादि के अनु. सार तुलनात्मक चर्चा ।
( ६ ) अङ्गों में आने वाले अन्यमतसम्बन्धी उल्लेखों की चर्चा ।
(७) अंगों में आने वाले विशेष प्रकार के वर्णन, विशेष नाम, नगर इत्यादि के नाम तथा सामाजिक एवं ऐतिहासिक उल्लेख ।
(८) अङ्गों में प्रयुक्त मुख्य-मुख्य शब्दों के विषय में निर्देश ।
अचेलक परम्परा के राजवार्तिक, धवला, जयधवला, गोम्मटसार, अङ्गपण्णत्ति आदि ग्रन्थों में बताया है कि आचारांग' में मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, १. ( अ ) प्रथम श्रुतस्कन्ध-W. Schubring, Leipzig, 1910. जैन साहित्य
संशोधक समिति; पूना, सन् १९२४. (आ) नियुक्ति तथा शीलांक, जिनहंस व पार्श्वचन्द्र की टीकाओं के साथ
धनपत सिंह, कलकत्ता, वि० सं० १९३६. (इ) नियुक्ति व शीलांक की टीका के साथ-आगमोदय समिति, सूरत,
वि० सं० १९७२-१९७३. (ई ) अंग्रेजी अनुवाद-H. Jacobi, S. B. E. Series; Vol. 22,
Oxford 1884. (उ) मूल-H. Jacobi, Pali Text Society, London 1882. (ऊ) प्रथम श्रुतस्कन्ध का जर्मन अनुवाद-Worte Mahavira, w.
Schubring, Leipzig; 1926.
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