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लाया हुया विधान या फल भोगने के लिप कम है ? हां तो सान नरक के नाग्थी जीवन भर मार काट करते है और उनका पाप यहाँ तक यह जाना है कि नियम से उन्हें निर्यञ्च गति में ही जाना पड़ता है और फिर नियम से उन्ह नरक में ही लौटना पडता है । मे पापियों में भी सम्यक्त्व कुछ कम नेतीम सागर अर्थात पनि होने के बाद ने मांगा के कुछ समय पहिले नर सदा रह सकता है। बर "मम्यन्य विधवाविचार करने वाले के नहीं रह सकता। बलिहारी है इस ममझदारी की।
प्रारंप ()-नारक्रिया सतव्यसन की सामग्री नहीं हिमशिन मध्यनयन हो योर होकर भी हट जाये।
লঃ ঘ শাসন না গান দ্বিগ্নান্নিা ঈ নিয়ম कुद भी मूल्य नहीं रखता।
समाधान----यापक के बहानेसे या तात्पर्य निकलता है कि अगर नरकों में मत व्यसन की मामग्री होती तो मम्य पत्य न होता और टूट जाता (नए होजाता)। वहां मन व्यसन की सामग्री नहीं है इसलिए मन्यक्त होता है और होकर
नहीं घटता है (नष्ट नहीं होता है नरक में मम्यक्त्व के नष्ट न होने की यान जब हमने कही थी, तब श्राप विगडे थे। यहाँ यही थान प्रापने स्वीकार करली है। कैसी अगत सन. कंना है। मान नरम दृष्यांन ने यह बात अच्छी तरह मिद्ध हो जाती है कि जय परम कृपा लेण्या घाला कर कर्मा, घोर पापी नारकी सम्यक्त्वी रह सकता है तो विधवा-विवाह वाला-जो कि अग्गुननी भी हो सकता है-सम्यक्त्वी क्यों नहीं रह सकता?
प्रारंप (3)-पाँचों पापों में एक है साल्पी हिंसा,