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( १६ ) ५००) रु० स्वयं देकर और लगभग ५००) रु० का अन्य भ्रातृगण से चन्दा एकत्रित करके उसके एक स्थायी खाते की नीव डाली और आगे को स्थायी फण्ड बढ़ते रहने तथा उसे सुयोग्य रीति से चलते रहने का भी अच्छा प्रबन्ध कर दियो। आप जब तक अमरोहा रहे तब तक वहां की पाठशाला और औषधालय दोनों केभानरेरी संचालक व प्रबन्धक रहे । और बाराबङ्की आते ही से यहां की पाठशाला के भी अब से ३ मास पूर्वतक(६वर्ष)आनरेरी प्रबन्धक रहे । और यहांक जैनऔषधालय
को स्थापित करके उसके अभी तक भी आनरेरी संचालक और प्रबन्धक हैं। ३. आप हिन्दी, उर्दू, फारसी, और अँगरेज़ी, इन चारों भाषाओं का अच्छा. परिशान
रखते हैं। ४. आप जैन धर्मावलम्बी होने पर भी न केवल जैन ग्रन्थों ही के अच्छे मर्मज्ञ और अ. भ्यासी हैं किन्तु वैदिक, बौद्ध, इस्लाम, ईसाई, आदि अनेक धर्मों और व्याकरण, गणित, ज्योतिष, वैद्यक आदि कई विद्याओं सम्बन्धी सैकड़ों सहस्रो ग्रन्थों का भी मिज द्रव्य व्यय से संग्रह कर उनका यथाशक्ति कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त करते रहे हैं। जिससे लगभग ६ हज़ार छोटे बड़े सर्व प्रकार के ग्रन्थों का अच्छा संग्रह होकर इस समय आपका एक ज्ञानप्रचारक'नामक बड़ा उपयोगी निज पुस्तकालय अमरोहा में विद्यमान है। ५. लगभग ५८ वर्ष के वयोवृद्ध होने पर भी आप अब भी बड़े ही उद्यमशील और परि
श्रमी हैं। गवर्मेंट सर्विस में रहते हुए भी रात्रि दिवश हिन्दी साहित्य वद्धि के लिये जी तोड़ परिश्रम करनाही आपका मुख्यध्येय है। उनकेअनेकानेकविषयों सम्बन्धी शान और अटूट परिश्रम का प्रमाण इनके लिखे ५० से अधिक हिन्दी, उर्दू प्रन्थ और मुख्यतः हिन्दी साहित्याभिधान के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अवयव 'वृहत जैन शब्दार्णव' (जो लगभग १०, १२ सहस्र से भी अधिक बड़े साइज के पृष्ठों में पूर्ण होगा ) और "संस्कृत-हिन्दी व्याकरण शब्द-रत्नाकर” आदि ग्रन्थ हैं। [ नं० (ङ) ६, १० ११, (ज) २, ३, पृ० ११, १२ ] ६. आप सन् १८६७ से १६०५ तक ( आठ नव वर्ष तक) बुलन्दशहर से प्रकाशित होने बाले एक उर्दू मासिक-पत्र के सम्पादक और उस के अधिपति भी रह
७. आप केवल हिन्दी उर्दू के लेवक या कवि ही नहीं हैं किन्तु ज्योतिष, वैद्यक, रमल,
यंत्र-मंत्र, आदि में भी थोड़ा थोड़ा और गणित में अच्छा अभ्यास रखते हैं। ८. बाराबङ्की हाईस्कूल को ट्रांस्फर होने पर लेखन सहायक पर्याप्त सामग्री (गून्थ आदि) यहां साश न लासकने के कारण आपने यहां केवल १ मास काम करने के पश्चात् ही दो वर्ष की फ़ौं ( Furlough ) छुट्टी ले ली और अमरोहा रह कर कोषादि लिखने का कार्य नित्यप्रति १५ या १६ घंटे से भी अधिक करते रहे। इस
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