Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 20
________________ Ahimaa ( १८ ) इन चमकते हुए. नेज़ों और विची हुई तलवारों पर कुछ घबरा घबराकर पड़ती और परे. शान हो होकर इधर उधर फैल जाती हैं। दूसरी जानिब झौजी लोग ज़राबक्तर पहिने और हथियार बांधे......। (३ ) असाढ़ का महीना है और बरसात का आगाज़ । शाम का वक्त है और मानसरोवर को किनारा । हर चहार तरफ़ कु.दरती सब्ज़ा लहलहा रहा है और रंगबरंगे फल विल रहे हैं। ठंडी ठंडी हवाओं के झोंके अजीब मस्ताना अन्दाज़ से झम झम कर चलते और नाजुक २फलों की भीनी भीनी खुशबओं में बसकर कुछ ऐसे अठलाते फिरते हैं कि ज़मीन पर पाउँ तक नहीं रखते । मानसरोवर का पानी हवा के झोंको से हिलकोरे ले लेकर लहरें मार रहा है। कोयले ऊँचे २ दरख्तों पर बैठी हुई कुहक कुहक कर कूक रही हैं। जुगनू (खद्योत) इधर उधर चमकते फिरते और इस मौसिम के कु.दरती चौकीदार झींगर और मेंढक खुशी में आ आ कर अपनी भरी हुई आवाजें निकाल रहे हैं।...... (४) रात के आखिरी हिस्ले का वह सुहाना ३ वक्त. है जब कि नसीमेसहर की। ठंडी २ सनक से बेअक्ल दुनिया दोर लोग तो और भी ऐंड २ कर सोते हैं मगर जो लोग इस रूह अफ़ज़ा ( चित्तोल्लासक) वक्त की ज़ाहिरी व बातिनी खूबियों से कुछ भी वाकिफ हैं वह इस येशबहो (भमूल्य ) वक्त, को गनीमत जान कर फौरनं आँखें मलते हुए उठ बैठते हैं और मायदेहकीकी ( परम पूज्य ) की याद में अपने अपने मज़हबी अकीदे के मुआफिक कुछ न कुछ देर के लिये जुरूर मसरूफ हो जाते है, बल्कि जिन्हों ने दुनिया की उल्फतों (मोहममता ) को दिल से निकालकर हुसूले-मारफत (आत्मरमण प्राप्ति ) के लिये गोशःगुज़ीनी (एकान्तवास ) इख्तियार करली है उनका तो कछ हाल ही न पूछिये । उन से तो नींद की खुमारी तक भी कोसों दूर भाग जाती है ।....... (५) इस वक्त रातकी तारीकी ( अँधेरी) बानरबंशियों की पस्तहिम्मती की तरह दुनिया से रुखसत हो रही है । आफ़ताब (सूर्य) जिसके नूरानी चिहरे पर कल शाम न मालूम किस खौफनाक खयाल से ज़रदी छा गई थी और जिसने अपनी गर्दन अहसान फरा. मोशों (कृतनियों) की तरह नीचे झुकाकर दामनेमगरिब (पश्चिम दिशा) में अपना मुंह छिपा लिया था रात ही रात में आज सारी दुनिया का तवाफ (परिक्रमा) करके अपनी गर्दन मुतकविबराना (अभिमानयुक्त )ऊँची उठाए हुए आगे बढ़ा आरहा है । (१०) अन्यान्य विशेष ज्ञातव्य बातें-- १. आप जैन समाज में एक सुप्रसिद्ध और प्रतिष्ठित विद्वान् हैं । जैनधर्म संरक्षिणी सभा अमरोहा ज़िला मुरादाबाद के लगभग १२ वर्ष तक (जब तक अमरोहा रहे ), और जैनसभा, बाराबती के १ वर्ष तक आप स्थायी सभापति के पद पर भी नियुक्त रह चुके हैं। २. आप 'श्री ज्ञानवर्द्धक जैन पाठशाला' और 'बी० यल० परोपकारक जैन औषधालय' अमरोहा के और 'जैन औषधालय' बाराबड़ी के मूल संस्थापक हैं, “परोपकारक जैन औषधालय, अमरोहा" के लिये आप ने - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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