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क्रिया- व्यापार संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त हो गया है कि इसके एक भी अंश को काट दिया जाये तो कहानी लड़खड़ा जायेगी। एक-एक शब्द अपने होने की सार्थकता और अनिवार्यता स्वयं सिद्ध करता है । यही है वर्णन का समर्थ प्रयोग, जो लगभग सभी कहानियों की विशेषता है ।
इनकी एक और विशेषता है-चित्रात्मक भाषा की जीवंतता । हरियाणवी यों भी इस मामले में काफी समृद्ध है।' आनंद का खुज्जाना' में इस दृष्टि से ये वाक्य ध्यातव्य हैं- “कपिल सोच मैं डूब गया । उसके मूं पै एक रंग आंदा अर चल्या जांदा । दूसरा रंग आंदा, फेर तीसरा । चाणचक खुसी तै उसका मूं खिल गया ।" साफ-साफ घटित होती दिखाई देती है कहानी । कप्पिल की खुशी दिखाई देती है- उसका मुँह खिलने के रूप में । इसी प्रकार 'भगवान महावीर अर चण्डकोसिया सांप' की ये पंक्तियां भी उल्लेखनीय हैं- “गुस्से में भरे फफकारते होए सांप मैं ध्यान में खड़े महाबीर के पायां मैं डंक मार्या । ईब के उसके जैहूरीले दांद महाबीर के पां के गूंठे मैं गडगे । उनके गूंठे तै खून की जंगा दूध बैहूण लाग्या ।” भाषा का यह प्रयोग उस कौशल का पुष्ट प्रमाण है, जो अनेक कहानियों में स्थान-स्थान पर शब्द-रेखाओं से निर्मित होते चित्रों में मुखर होता है। ये चित्र कहानियों को जीवन्त रूप देने के साथ-साथ पाठक की कल्पना - शक्ति को जाग्रत भी करते हैं। यह कार्य अनेक उपमाओं ने भी बाखूबी सम्पन्न किया है । जैसे 'छिमा की मूरत' कहानी का यह अंश- “फेर सुदरसन जमीन पै पलोथी ला कै बैठ ग्या । उसनें ओड़े तै-ए भगवान् महावीर की बंदना करी अर भित्तर-ए-भित्तर नमोक्कार मंतर पड्ढण लाग्या । उसके भित्तर पहाड़ बरगी सान्ती थी ।" यदि मन की शान्ति को यहां पहाड़ जैसी न कहा गया होता तो पाठक उसे देख नहीं सकता था । इस उपमा ने शान्ति की विराटता और अडिगता को एक साथ व्यंजित कर दिया ।
इन कहानियों के माध्यम से व्यंजित होने वाले कथा - कौशल की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है- ठेठ हरियाणवी का ठाठ । हरियाणवी लोक-जीवन की समृद्धि कहीं मुहावरों के रूप में आई है तो कहीं कहावतों के रूप में । ' आनन्द का खुज्जाना' में कप्पिल जब राजा के सामने अपराधी बन कर पेश हुआ तो “उसकी आंख धरती मैं गड्डन नैं हो रही थी ।" साथ ही 'दयालु राज्जा' में राजा अपने उत्तराधिकारी के विषय में जानने पर कहता है, “थम सोला आन्ने ठीक राय दी सै ।" इसी प्रकार 'अनाथ कुण सै' में साधु ने जैसे ही राजा श्रेणिक को अनाथ कहा तो, “या बात सुण के राज्जा के पतंगे लड़गे ।” इसके अतिरिक्त 'साद्धू के सत्संग' में धर्म से दूर रहने वाले राजा को आचार्य केस्सी स्वामी जब धर्म के विषय में ज्ञान देकर आश्वस्त कर देते हैं तो कहानी कहती है, “घणी बात के राज्जा का पेट्टा भर गया ।" ससुर ने बहुओं की समझदारी परखने के लिए जब धान के पांच-पांच दाने सभी को संभालने के लिए दिए तो बड़ी बहू ने 'अक्कल आपणी आपणी' शीर्षक कहानी में सोचा- “मेरा सुसरा तै बुड्ढाप्पे मैं अक्कल के पाच्छै लठ लिए हांडै सै ।" इन सभी उद्धरणों में ठेठ हरियाणवी मुहावरों ने भाषा
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