Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 133
________________ दिया होया परसाद सै । उसने पांचूँ दाणे मुँह मैं घाल लिए अर हजम करगी। तीसरी का नां था- रक्सिका । उसनै सोची - सुसरे नै ये सिंभाल के धरण खातर दिए सैं । ये घणे-ए कीमती होंगे। ये जरूर सिंभाल कै धरणे चाहिएँ। कदे मांगेगा तै काढ़ के दे यूंगी। किसे भी तरियां ये खोये ना जाँ । उसनै वे दाणे खूब सिंभाल कै चौक्कस धर दिए। सब तै छोट्टी का नां था- रोहिणी। उसने सोची अक सुसरा तजरबेकार आदमी सै अर अकलबंद भी पूरा-ए सै। न्यूं लाग्गै सै अक चारूआँ तै ये दाणे उसनै चारूआँ की अक्कल देखण खातर दिए हो । छोट्टी नै न्यूं सोच कै धान के वे दाणे खेत में बुआ दिये । थोड़े-ए दन मैं वे जाम्याए। उनकी देख-भाल करी । अपणे टैम पै वे होगे। उन तै जितणा भी धान होया वो फेर न्यूं का न्यू बुआ दिया । न्यूं करते-करते कई साल गुजर गे। ___एक दन फेर तड़के-तड़क सेट नै चारूँ बहू बलाई । बला कै बूज्झा अक मन्नै थारे तै पांच-पांच दाणे धान के दिए थे। तमनै के कऱ्या उनका? कित सैं वे दाणे?" ___बड्डी बहू उज्झिका बोल्ली- मन्नै तै वे न्यू-ए गेर दिए। दूसरी बहू भोगवती बोल्ली- मन्नै तै वे परसाद समझ के खा लिए । तीसरी बहू रक्षिका का नम्बर आया तै वा हुमाये मैं भरी पहोंची अर चांद्दी की डब्बी खोल कै वे हे दाणे सुसरे के हाथ पै धर दिए । तीनुआँ का ढंग देख के सेट छोट्टी कान्नी लखाया वा, जिसका नाँ रोहणी था, बोल्ली- जो दाणे हरियाणवी जैन कथायें/110

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