Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 132
________________ জল 3g০-got एक सेट था। उसके धोरै घणाए धन था। उसके चार छोरे थे। चारूं ब्याहे-थ्याहे थे। घर आली घणे दन पहलां गुजर ली थी। एक दन सेट सोचण लाग्या-मन्नै भतेरा धन कमा राख्या सै | घर मैं सब तरियाँ की मौज सै । घर आली तै पहलां-ए राम नै प्यारी हो ली । अर ईब मैं भी बूड्ढा हो लिया तूं। कदे भी लुड़क ज्यांगा । मन्नै फिकर-सी लागी रहैगी अक मेरे मरें पाछै घर की जुम्मेवारी कुण-सी बहू आच्छी तरियां सिंभालेगी! चारुआं का हिन्तान (इम्तिहान) ले ल्यूं तैं माड़ी-मोटी तसल्ली रहेगी। जुण-सी बहू काबल होगी उस्सै नै सारा हिसाब-किताब समझा के चाबी सोंप दूंगा। सकीम बणा के एक दन सेट नैं चारूँ बहू बलाई । चारूआँ तै धान के पांच-पांच दाणे दे दिए। बोल्या-इन नै सुथरी ढाल सिंभाल कै राखियो । चारूआँ नै धान के दाणे ले लिए। सब तै बड्डी का नां था-उज्झिका । दाणे ले कै वा सोचण लाग्गी अक मेरा सुसरा तै बुढापे मैं अक्कल के पाछै लठ लिए हांडै सै। कद्दे हो कुछ भी कह दे सै। ईब उसनै कोए बूज्झण आला हो- के जरूत सै ये दाणे सिंभालण की? न्यू बोल्या अक सुथरी ढाल सिंभालियो......जाणू ये चांदी-सोन्ने हों....अर म्हारे धोरै कोए घर का काम ना हो! न्यूं सोच कै उज्झिका नै वे दाणे न्यूं-ए गेर दिए । बुहारी लाग्गी तै कूड़े गेलां वे दाणे भी सम्हरे गए। दूसरी का नां था- भोगवती। उसनै सोची अक सुसरा बड्डा आदमी सै। कुछ सोच के ये दाणे दिए होंगे। मेरे खातर तै यो मेरे सुसरे का अक्कल आपणी-आपणी/109

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