Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 135
________________ मन्नै लिए थे, वे दाणे तै इब गाड्डियां मैं आ सकें सैं | किसे एक आदमी के बसके वे ठा कै ल्याणे कोन्या ।" “आच्छा.... वे पांच दाणे गाड्डी मैं आवेंगे? न्यूं क्यूक्कर?" सेट नै घणा-ए अचम्भा होया । "ना तै मन्नै वे दाणे गेरे, ना खाये.... अर ना-ए ताले भीतर धरे. ... मन्नै तै वे खेत मैं बुआ दिये थे। जाहें तै ईब वे घणे-ए दाणे हो लिए अर गाड्डी मैं-ए आ सकैं सैं ।” रोहिणी बोल्ली । या बात सुण कै सेट की बूड्ढी आंख्याँ मैं पाणी भर आया। उसने अपणा फैसला सुणाया- जो फैंकण मैं माहिर सै वा सारे घर की सफाई का काम सिंभालेगी। खाण मैं माहिर बहू घर की रसोई बणाया करैगी । जुण-सी सिंभालणा जाणै सै वा घर के खुज्जाने की देख-भाल करैगी अर सब तै छोट्टी बहू सारे घर की सरपंच रवैगी। एक वा हे सै जो धान्नाँ की तरियाँ घर की इज्जत अर घर का धन-मान बढा सकै सै। न्यूं कह कै सेट नै चाबियां का पूरा गुच्छा सब तै छोट्टी बहू के हाथ पै धर दिया । 00 हरियाणवी जैन कथायें/112

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