Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ एक-सा सिमझा करै । योगिराज सिरी रामजीलाल जी म्हाराज इसे-ए साच्चे गरु थे। उनकै धोरै हिन्दू, मुसलमान, सिरदार, बाल्मीकि मतबल सारै धरमां के माणस आवें थे अर उनती आपणा गरु मान्नै थे । उन नैं साधना करते-करते जिब देख्या अक यो सरीर ईब आतमा की साधना मैं साथ कोन्यां देंदा तै उन नैं ओ छोड दिया। उनका आखरी चमास्सा अमीनगर (मेरठ, उत्तर प्रदेश) मैं था। ओड़े की माट्टी मैं आस्सुज म्हीने की अंधेरी पांचम के दन, सम्मत् २०२४ मैं योगिराज सिरी रामजीलाल जी म्हाराज नैं आपणी देही छोड्डी। उस टैम ओडै देस जुड़ ग्या । च्हाणियां ताईं जै कारे बोलती होई दुनिया गई। योगिराज जी म्हाराज चंदन की तरियां दुनियां मैं आपणी मैइक छोड गे । योगिराज जी म्हाराज का सरीर बेस्सक खतम हो ग्या पर उनका जीणा अमर हो गया। ___ उनके चेल्ले जैन सासन सूरज गरूदेव सिरी रामकृसन जी म्हाराज अर सिरी सिवचंद जी म्हाराज ईब भी उनके चरणां के निस्सान्नां पै चाल्लण लाग रहे सैं । योगिराज जी म्हाराज की किरपा तै सिरी रामकृसन जी म्हाराज नैं धरम के ठाठ ला राक्खे सैं । जंगा-जंगा योगिराज जी की किरपा तै हस्पताल अर सकूल चाल्लण लाग रहे सैं अर दुनिया का भला हो सै। सिरी योगिराज जी म्हाराज के चरणां मैं म्हारी हाथ जोड्य कै बंदना! Gya साच्चे गरू योगिराज सिरी रामजीलाल जी म्हाराज/120

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144