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बेसती करा के पाल्लक आपणे राज मैं उलटा चाल्या गया । आपणे ऊपर उसनैं सरम आण लाग रही थी । भित्तर - ए - भित्तर उसनैं सकंदक तै इस बेसती का बदला लेण की पक्की सोच ली। टैम लिकड़ता रहूया ।
एक दन सकंदक आपणे पांच सै ढब्बियां गेल्लां बीसमें तीरथंकर मुनी सुव्रत स्वामी के चरणां मैं पहोंच्या । उसनैं तीरथंकर की बाणी सुणी । भगवान की देसना सुण के उसका जी बिरागी हो ग्या । बोल्या, “भगवान! मन्नै भी मुनी- धरम की दीक्सा दे यो। मेरे ढब्बी भी आपके उपदेस सुण कै दीक्सा लेणा चाहूवैं सैं।"
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भगवान नैं उन तै मुनी- दीक्सा दे दी। थोड़े दन ओड़े रहें पाच्छै एक दन सकंदक नैं कही, “भगवान ! मैं आपणी बाहूण अर भिणोइये नैं धरम का उपदेस देणा चाहूं सूं ।” मुनी सुव्रत स्वामी बोल्ले, “बात तै या भोत बढ़िया सै पर ओड़े थमनैं कष्ट होवैगा । थारे सारे सात्थी मार दिए जांगे । "
"प्रभो ! हमनें मरण का डर कोन्या । हम तै आपके विचार चारूं कान्नीं फलाणा चाहूवैं सैं" सारे कट्ठे हो कै बोल्ले ।
भगवान नैं आग्या दे दी। सकंदक आपणे सात्थियां गेल्लां राज्जा दंडक के राज कान्नीं चाल पडूया ।
पाल्लक नैं इसका बेरा पाट्या । ओ राज्जी हो गया । सोच्ची अक यो मोक्का - सैं। ईब मैं आपणी बेसती का बदला ल्यूंगा । घणी वार ताई ओ सोचदा रहूया । सकंदक मुनी अर उस के सात्थी साधू नगरी के धोरै एक बाग मैं ठहूर गे । रात नैं पाल्लक ओड़े पहोंच्या । उसनें खड्ढे खोद कै उनमें
करणी अर भरणी/ 65