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के कान्नां मैं भी पड़ी। ओ भी आपणे घर-कुणबे गेला बाणी-सुणन पहौंच ग्या । सबनै जिसी बात सुणी थी, उस तै भी बत्ती बात पाई । सारे के सारे म्हावीर भगवान नै मान्नण लाग गे । सब तै घणा असर पड्या राज्जा के छोरे मेघ कुवार पै। बखाण जिब पूरा हो लिया तै ओ भगवान के चरणां मैं जा पहौंच्या अर दीक्सा दे कै साधू बणान खातर बिनती करण लाग्या । भगवान बोल्ले- पहलां अपणे मां-बाप तै बूझ, दीक्सा की अज्ञा ले ले, जिब्बै दीक्सा ले सकै सै ।
मेघ कुवार महलां मैं उलटा आया । राज्जा-राणी आगै आपणे मन की बात कही । राज्जा नैं ओ घणा-ए समझाया। उसकी मां तै रोण लाग गी । आपणे भीतर की सारी मामता उसनै छोरे पै बरसा दी । फेर भी मेघकुवार आपणे फैसले तै जौ भर भी कोन्यां डिग्या। मां-बाप नैं जिब देख लिया अक छोरे पै तै उनकी बातां का कोए असर ना पड़े तै वे कहण लाग्गे, "बेट्टा! हमनैं जो कुछ समझाणा-समझूणा था ओ तै हमनें सारा कर लिया । तू चाहे मान चाहे मतन्या मान । म्हारा ईब एक अरमान सै। हम न्यूं चाहवै सैं अक दीक्सा लेण तै पहलां तु एक बर राज-सिंघासन पै बैठ ज्या । म्हारा यो आखरी अरमान सै । बस! तू इस नैं पूरा कर दे । फेर जुकर तेरा जी करै न्यूं-ए कर लिए।” _मेघ कुवार नैं उनकी या बात मान ली । उसका राज तिलक हो गया । एक दिन खातर ओ गद्दी पै बैठ्या । आगले दिन ओ राज-पाट छोड के जाण लाग्या । चालते-चालते उसकी मां बोल्ली अक, “दखे! तू साधू बणन खातर ते जा सै पर पूरे संजम तै जिनगी बिताइये । खूब ऊंचा साधू बणिये। किस्से भी तरियां की कोए कमजोरी आपणे भीतर मतन्या आण
मेघ कुवार मुनी/71