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बता दी। अभै कुवार बोल्या अक “पिताजी... कती फिकर ना करो | वा मेरी मां सै । मैं राणी के जी की बात साच्ची कर के दिखाऊंगा ।" न्यूं कह कै ओ पोसा करण की जंगा मैं चाल्या गया। खाणा-पीणा छोड के तीन दन की तिपस्या करण लाग्या । दो दन बीत गे।
तीसरे दन देवलोक मैं एक देव बैठ्या था। उसका नां था- रिद्धी कुमार । उसनै अभैकुवार की तिपस्या का बेरा पाट्या । ओ उसके धोरै आया। उस तै बर मांगण की कही। अभैकुवार नै आपणी राणी मां के जी की बात साच्ची करण खातर बिनती करी। देव 'तथास्तु' कह कै चाल्या गया। बारिस होण का ढंग दीखण लाग्या । अकास मैं काले-काले बाद्दल आ गये । बाद्दलां नै देख कै राणी घणी-ए राज्जी होई। हाथी पै बैठ कै वा वैभार गरी के पहाड़ पै हांडण गई। उस के जी की बात साच्ची होई।
आच्छे म्हूरत मैं राणी कै छोरा होया। उसका नां धर दिया- मेघ कुवार । जुकर एक-एक दिन चंदरमा की कला बढ्या करै सै, न्यूं-ए ओ भी बढण लाग्या । राज्जा नैं ओ पड्ढण खातर अचार्य जी धोरै घाल दिया । थोड़े-ए दिनां मैं उस नैं घणी-ए बिद्या सीख ली। ओ ओड़े तै बिदवान बण कै घरां उलटा आ लिया । राज्जा नै सुथरी अर काबल छोरी गेलां मेघकुवार का ब्याह कर दिया । ____एक बै बिहार करदे-करदे म्हावीर भगवान उसे सहर के बाहर आ ग्ये । लोग उनकी बाणी सुणन खातर तरसैं थे। दुनिया उनकी बाणी सुणन आण लाग गी। लोग उनके बखाण की तारीफ सारे सहर मैं करण लाग गे। चुगरदे के या-ए बात चाल पड़ी। चालते-चालते या बात राज्जा
हरियाणवी जैन कथायें/70