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जो करै सै ओए भरै सै
राजगीर मैं एक कसाई रहूया करता । उसका नां था- कालसौकरिक । ओ रोज पांचसै झोट्टे मार्या करता । यो-ए उसका धंदा था, जिस तै उसके घर-कुणबे का गुजारा होया करता ।
एक दन राजगीर के राज्जा सरेणिक नै कालसौकरिक आपणे दरबार मैं बलाया अर उस ते कहूया, “तू झोट्टे मारणे छोड़ दे। जै तू यू भंडा काम छोड़ देगा तै मैं तन्नैं घणा-ए धन दूयूंगा। तेरा गुजारा पूरे ठाट तैं होया करैगा । "
कसाई बोल्या, “हे म्हाराज! मैं आपणे धंदे नै कोन्यां छोड़ सकदा । ओर कोए सेवा मेरे जोग्गी हो तैं मन्नै हुकम यो। मैं थारे हुकम नैं खूब राज्जी हो कै मान्नूँगा ।
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राज्जा नैं ओ कसाई घणा सिमझाया पर ओ किस्से तरियां भी कोन्या मान्ना । राज्जा नै जिब्बै-ए, ओ एक कूएं मैं रुकवा दिया। कूआं डूंगा था पर उस मैं पाणी ना था । उसमें झाड़-झंखाड़ जाम रे थे उस मैं चौबिस घण्टे अंधेरा रहूया करै था । उसके तले की माट्टी मुलाम थी ।
राज्जा सरेणिक भगवान महावीर धोरै पहौंच्या । कहण लाग्या “हे भगवान ! मन्नैं ओ कसाई कालसौकरिक कूएं मैं रुकवा दिया सै । ईब उसनै मजबूर हो कै आपणी झोट्टे मारण की आदत छोडणी पड़ेगी । " भगवान बोल्ले, “उसकी आदत के छूटै सै !”
जो करे से ओए भरे सै/105