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"हे भगवान! मन्नै जिस कूएं मैं ओ रोक राख्या सै, ओडै ओ झोटै क्यूकर मार सकैगा?” राज्जा नै हैरान होकै बूझी।
"उस कुएं की माट्टी मुलाम सै। माड़ी मोट्टी सील उस माट्टी मैं रह री सै । ओ उस माट्टी के झोटे बणावैगा अर फेर उन नैं मारैगा ।" भगवान महावीर नैं राज्जा तें समझाया । भगवान के दरसन करें पाछै राज्जा उस कूएं पै गया। देख्या ते सांच्चे ए ओ माट्टी के झोटे बणान लाग रह्या था अर उन नै काट्टण लाग रया था।
राज्जा सरेणिक नै सोच्ची अक भगवान महावीर ठीक कहें थे। इसकी आदत के छूटै सै! इस ती कुएं मैं रोक्कण का भी के फैदा?" राज्जा नै ओ छोड दिया।
थोड़े दन पाछै कालसौकरिक मर ग्या।
टैम न्यू-ए लिकडे गया । एक दन सारे रिस्त-नाते आले कालसौकरिक के छोरे धोरै आए । उस छोरे का नां सुलस था। सब नैं कहीं अक “आपणे बाप का झोट्टे मारण का धंदा सिम्भाल ले । आपणी घर-गिरस्ती बसा ले ।”
हाथ जोड़ के सुलस कहण लाग्या, “मन्नै भगवान महावीर की बाणी सुण राक्खी सै। मैं तै यो मुंडा काम कोन्यां करूं।"
सारे यारे-प्यारे बोल्ले, “तू सोच मतन्या करै । तेरे पापां मैं हम भी हिस्से बँटावेंगे।"
न्यूं सुणतां-ए सुलस नै कुहाड़ा ठाया। सबनै सोच्ची अक झोट्टे मारण नैं कती त्यार हो लिया । पर यो के? उसनें तै कुहाड़ा आपणे पां
हरियाणवी जैन कथायें/106