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भगवान महावीर अर
चण्डकोसिया सांप भगवान् महावीर जैन धरम के चोबिसमें तिरथंकर थे। एक बर वे चाल्ले जां थे। जिस राही पै वे आग्गे नैं चालते जां थे वा घणे डूंगे जंगल कान्नी जा थी। जिब्बै-ए पाच्छे तै भाजते होए दो-चार पालियां नै महावीर तै बोल दे के कया
“बाब्बा..... ओ बाब्बा! ठहर जा! इंग्घे नै मतन्या जा।”
महावीर सैहर गे। धोरै आए पालियां तै महावीर नैं बूज्झ्या - “क्यूं? के बात सै? तम मन्नै क्या खात्तर बोल द्यो थे?"
पाली बोल्ले-“आग्गै एक खतरनाक सांप रहे सै। उसका नां सै चण्डकोसिया । ओ घणा-ए जैह्री सै | आदमियां की तै बात - ए के सै...... जिनावर भी उसकी फफकार तै डरै सैं। उसनै तो मोक्का मिलणा चहिए। उसकी फफकार मैं इतणी जान सै अक अकास में उड़ते होए पक्सी भी खिंच के तलै आ पड़ें सैं । जंगल के पेड़-पौधे भी उसके जैहर तैं भसम हो लिए सैं- इसा सांप इस जंगल में रहै सै । जाएं तै इंग्घे कै मतन्या जाओ। हाम थमनें दूसरी राही बता देंगे। ओड़े के लिक्कड़ जइओ।"
महावीर नै चण्डकोसिया सांप के खतरे के बारे में सुण्या। उनके भित्तर प्यार उमडूयाया। वे बोल्ले, “सांप तै मेरा दोस्त-ढब्बी सै । मैं उस्सै के धोरै जां सूं ।” ग्वाले देखदे रैगे । महावीर आग्गे नैं चाल पड़े।
चालते-चालते महावीर सांप की बाँबी धोरै पहोंच गे। ओडै पहोंच के वे ध्यान करण लाग्गे ।
भगवान महावीर अर चण्डकोसिया सांप/93