Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 119
________________ बाँबी के भित्तर पड़े सांप नैं आदमी की खसबू आई। ओ फफकारता होया बाँबी से बाहर लिकड्याया। उसनैं बाँबी धोरै एक आदमी खड्या देख्या तो उस नैं छोह आ गया। सब तैं पहलां उसने महावीर पै आपणी जैहरीली फफकार छोड्डी। चण्डकोसिया की फफकार मैं इतणा जैहर था अक वा जिसकै भी लाग जांदी, ओ हे मर जांदा । पर महावीर पै उसका माड़ा-सा भी असर कोन्यां होया । सांप नै आपणी दूसरी ताक्कत दिखाई । वा ताक्कत थी- आंख्यां का जैहर । जैहरीली आंक्खां तै ओ लगातार महावीर नैं देखदा रह्या । देखदा-ए रया। सांप जिब किस्से दूर के पराणी नैं भी इस तरियां देख्या करता ते ओ माड़ी वार मैं-ए बेहोस हो कै लै पड्या करदा । इसा जैह्र था उसकी आंक्खां मैं । पर महावीर पै उसका भी कोए असर ना होया। ईब तै चण्डकोसिया के जी मैं आग लाग गी । उसनें पूरे छोहू मैं भर के आपणी तीसरी ताक्कत का इस्तेमाल कऱ्या । गुस्से मैं भरे फफकारते होए सांप नैं ध्यान में खड़े महावीर के पायां मैं डंक माऱ्या | ईब के उसके जैहरीले दांद महावीर के पां के गूंठे मैं गड गे। महावीर के गूंठे तै खून की जंगा दूध बैहण लाग्या । न्यूं देख के सांप नैं घणा ताज्जब होया । ओ लखता-ए रैहू ग्या अक यो किसा आदमी आया । यो आदमी सै अक द्यौता? खून ते सारे माणसां मैं कै लिकड्या करै सै पर यो महापुरस कुण सै जिसके सरीर तै खून की जंगा दूध बैहण लाग रह्या सै? हरियाणवी जैन कथायें/96

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