Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 123
________________ साचा भगत कामदेव सरायग एक बर सुरंग मैं सभा होण लाग रही थी। ओड़े सारे देवता बैठे थे । इन्दर महाराज नैं धरती का जिकर छेड़ दिया। भरी सभा मैं न्यूं कहण लाग्या, “इस टैम सारी धरती पै कामदेव बरगा कोये भी जैन धरम का भगत कोन्यां । " या बात सुण कै घनखरे देवता कामदेव की जय बोल्लण लाग गे पर एक मिथ्या देव ने इस बात का यकीन कोन्या आया । ओ खड़ा हो कै कहण लाग्या "हे इंदर महाराज! या बात तै मन्नै झूठ लाग्गै सै। जिब ताईं उसकी भगती का हिंतान ( इम्तिहान ) ना हो ले, उस तैं पहल्यां सब तै ऊंचा भगत कहणा कोये अक्कलबंदी ना सै । " इन्दर महाराज बोल्या, “भाई! तू उसका हिंतान ले कै देख ले । जै तू उस नै सब तैं ऊंचा भगत ना कहता आवै तै मन्नै कह दिए । " उस मिथ्या देव नैं इंदर तै हुकम ले कै कामदेव का बेरा कर्या । इंदर तैं उस के बारे मैं घणी-ए बात बूझ ली। उसका हिंतान लेण खातर ओ सुरग तै धरती कान्हीं चाल पड्या । चालते -चालते ओ चम्पा नगरी मैं कामदेव के घर धोरै आ लिया। आ के उसने बेरा पाट्या अक कामदेव ने आपणा सारा कारबार अपने बड्डे छोरे तै सिंभलवा दिया सै । इस टैम ओ पोसदसाला मैं पोसा (पौषध व्रत) करके भगती करण लाग रहूया सै । मिथ्या देव नै सोची अक यो ऐन मोक्का सै। मै उसके धोरै राक्सस का रूप बणा कै जाऊं अर उसने उसके धरम तै डिगा कै दिखाऊंगा । फेर के था । उस नै जिब्बै-ए राक्सस का रूप बना लिया। रात का हरियाणवी जैन कथायें / 100

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