Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 124
________________ टैम था। ओ धरम की जंगा मैं बड़ ग्या । देख्या तै कामदेव अपणे धरम-करम में लाग रहा था । उसने देख के राक्सस टाड्या, "रै कामदेव! तू किसकी भगती करै सै? अर किस नै पूज्जै सै? तू या भगती अर पूज्जा छोड दे । नहीं तै या तीन हाथ की तलवार दीखै सै ना? एक सिकंड मैं तेरा सिर तार ल्यूंगा ।” कामदेव उस नै के गोलै था? ओ तो अपणे धरम मैं लाग्या रया । राक्सस नै ओर भी छोह आया । ओ कामदेव के सरीर नैं जंगा-जंगा तै काट्टण लाग्या । कामदेव के दरद तो घणा-ए होया, पर ओ भी घणा पक्का भगत था । लाग्या रया आपणे धरम मैं । उस देव नैं सोची अक ईब खाली तलवार तै काम कोन्यां चाल्लै । कोये और तरकीब करणी पड़ेगी। धरम की जंगा तै बाहर आ कै उसने राक्सस का रूप तै छोड दिया अर एक बड्डे हाथी का रूप बणा लिया । हाथी बण के ओ धाड़ता अर चिंघाड़ता होया फेर कामदेव के धोरै पहौंच लिया। उस तै फेर कही अक तू धरम छोड़ दे, नहीं तै तेरा निसान भी टोया नहीं पावैगा । ओ उसके ऊपर झपट्या । पर, कामदेव के तै बाल भी कोन्यां कांपे। ओ तै धरम मैं न्यू लाग्या रया जाणुं हाथी ओडै था-ए ना। यू देख कै हाथी नै छोह मैं बौला होणा-ए था। उसनै कामदेव अपणी सूंड मैं लपेट लिया अर धम्म देणे-सी जमीन पै दे माऱ्या । पायां तै उसनैं छेत्तण लाग्या । बोल्या-तेरे हाड-हाड दरड़ यूंगा। ईब के तै कामदेव के पहलां तै भी घणा दरद होया पर ओ अपणे धरम तै डिग्या कोन्या । . ____ हाथी फेर ओड़े तै लिकड़ आया। बाहर आ के उसनैं लाम्बे अर काले सांप का रूप बणाया । फफकारता होया ओ कामदेव धोरै पहोंच्चा । अर बोल्या, “ईब के तू किस्से ढालां ना बच्चै । देख ले ईब भी मोक्का साचा भगत कामदेव सरावग/101

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