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सेट नैं डाकुआं की बात सुणी । ओ भी हैरान रह गया। माड़ी वार कुछ सोच कै बोल्या, “इस बात का बेरा रात नै लाग्गैगा । आज रात नैं तम फौजियां नै फेर देखियो ।” सेट की बात मान कै डाक्कू चाल्ले गए ।
सेट कै बिस्वास हो ग्या अक यो सारा नौकार मंतर का असर सै । ये फौजी भी नौकार मंतर के पैंतीस अक्सरां के हुकम पै चाल्लण आले देवता सैं । एक फौजी के सिर ना होण का मतबल सै अक मेरे मंतर के पाट मैं कोए कमी सै । उदन रात होई तै सेट नै पूरे ध्यान तै नौकार मंतर पढ्या । पढती हाणा उसनैं बेरा पाट्या अक मंतर के आखरी सबद की बिन्दी उसपै बोल्ली-ए ना जा थी । उस टैम सेट नैं मंतर का सुध पाठ कर्या अर सो गया। डाक्कू आए। उन नैं देख्या अक फौजी पैहूरा देण लाग रहे हैं पर बिना सिर का जो फौजी था ओ उन मैं कोन्यां । तड़कै उनती सेट आग्गै रात नैं बीत्ती होई सारी बात कैह दी ।
सेट नैं कही- “भाइयो! बात या सै अक मैं एक मंतर का जाप करूर्या करूं । उसका नां सै नौकार मंतर। उसके पांच सबद अर पैंतिस अक्सर सैं । तमनैं जो फौजी देक्खे, वे फौजी कोन्यां थे । वे तै देवता सैं । वे नौकार मंतर की पूजा करण आले सैं अर पूज्जा करण आलां की इमदाद भी कर्या करें ।
एक अक्सर की बिन्दी मेरे पै बोल्ली ना जा थी, जाएं तै तमनैं बिना सिर का फौजी देख्या था । उसका सारा रूप बाद मैं परगट होया जिब मन्नैं मंतर का सुध पाट कर्या । "
सेट ते नौकार मंतर की मैहूमा सुण के डाकुआं नैं बूज्झी के हम नैं भी इस मंतर का बेरा लाग सकै सैं? सेट बोल्या, “लाग क्यूं ना सकदा? तम
मन्तर का चिमत्कार/91
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