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दिए ।” राज्जा नैं भी उस तै न्यूं हे कही ।
मेघकुवार महावीर भगवान के चरणां मैं पहौंच गया। भगवान नैं उस तै दीक्सा देण की किरपा कर दी। इब ओ मुनी मेघ कुवार बण गे ।
मेघ मुनी सारे मुनियां मैं सब तै छोट्टे थे। रात होई तै सोण खातर उन नै सब तै पाछै देहलियां धोरै जंगा मिल्ली। रात नै जिब भी कोए मुनी ओड़े तै आता-जाता तै मेघ मुनी नै आपणे पां सकोड़ने पड़ते । एकाधी बर दूसरां के पां उनकै लाग भी जाते। इस बात तै वे दुखी हो लिए । सारी रात नींद कोन्यां आई साद्धू बणन के अपने तावलेपण पै सारी रात झीखते से रहे । माड़ी-माड़ी वार मैं मां-बाप के लाड्डां की याद आण लाग गी। न्यूं सोचते रहे अक मन्नैं घणी-ए मूंडी करी । जै मां-बाप की बात मान लेंदा तै यो दुक्ख थोड़ा-ए देखणा पड़ता। मैं राज्जा का छोरा अर ये साहू मन्नैं आते-जाते ठोकर मारैं । या भी कोए जिनगी सै ? इस तै तै आच्छा मैं पहल्यां-ए ना था !
आपणे घमण्ड मैं उसनैं फैसला कर लिया अक मुनी का बाणा छोड कै मां-बाप के धोरै जाऊंगा। वे मन्नैं घर मैं उल्टा आया देख के घणे-ए राज्जी होवेंगे। न्यूं- ए सोचते-सोचते तड़का हो गया। उसनैं सोची अक भगवान आगे कह के अर फेर जाणा चहिए।
वे भगवान के चरणां मैं पहौंच गे । सारी बता दी। भगवान समझाण लाग्गे, “इसमें दुखी होण की कुण-सी बात से? तम आपणे आप नैं भूल गे। यो तै कुछ भी दुक्ख कोन्या । पाछले जनमां मैं तै तमने घणा कसट ठाया था । " या बात सुण कै मेघ मुनी नै भगवान ते आपणे पाछले जनमां की बात सुणान की बेनती करी ।
हरियाणवी जैन कथायें / 72