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महावीर भगवान बोल्ले- “थारे तीसरे जनम का जिकर सै। तम हाथियां के परधान थे । एक बर गरमियां के दिन थे । जंगल के जीव-जन्तु गरमी के मारे घणे-ए दुखी हो रे थे । पाणी टोहूण खातर और जानवरां गेल्लां तम भी भाजे फिरो थे । फेर तम एक जोहड़ नै देख के उस मैं पाणी पीण नै बड़गे । ओड़ै घणी-ए दलदल थी। तम उस जोहड़ की दलदल में फंस गे । चाणचक एक हाथी ओर ओड़ें पहौंच गया । उसकी अर थारी दुसमनाई थी। उसनें आपणे पैन्ने दांतां तै थारा सारा सरीर ओड़ै बींध दिया । तम नै बोल-बाले रह कै सारा कष्ट ओट लिया । आखिर मैं थारे पराण लिकड़ गे । ”
" दूसरे जनम की कथा भी सुणाओ भगवान! ” मेघ मुनी नै बेनती करी ।
भगवान सुणान लाग्गे, “दूसरे जनम मैं भी तम हाथी बणे । थारे यारे-प्यारां नै फेर तम आपणे परधान बना लिए। एक बर जंगल मैं आग लाग गी । सारे जीव-जंतुओं मैं भगदड़ माच गी। जान बचाण खातर कोए किंघे नैं भाजता, कोए किंघे नैं । वा आग घणी ना थी । तौली-ए बुझ गी । पर या देख कै तमनैं घणा डर लाग्या । तमनें आपणी अर आपणी गेल रैहण आलां की जान बचाण खातर एक गोल मदान बणाया, जिस मैं घास-फूस का एक तुणका भी ना था । पेड़-पाड़ ओड़े तैं सारे पाड़ के हटा दिए थे । मदान कती साफ लिकड़ आया था ।
गरमी फेर घणी हो गी । ईब के जंगल मैं धणी खतरनाक आग लाग्गी । तम आपणे साथियां नैं ले के उस मदान में आ गे । थारी जान बचती देख के आपणी जान बचाण खातर जंगल के छोटे-बड्डे सारे-ए जीव-जंतु उस मदान में कट्ठे होण लाग गे । तमनैं सब तैं जंगा दे दी ।
हरियाणवी जैन कथायें /74