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जिब्बै-ए जल्लादां नैं ओ बालक मुनी भी कोल्हू मैं फेंक दिया ।
सकंदक मुनी ते ना रह्या गया। वे बोल्ले- "रै पापी! तेरा नास होण आला सै । मैं सारे सैहर नै जला के राख कर यूंगा।"
पाल्लक नै सकंदक की बात कोन्यां सुणी । अर, हुकम दे दिया अक - इसनैं भी कोल्हू मैं फैंक द्यो । सकंदक मुनी भी कोल्हू में पीड़ दिये गये।
हर्या-भऱ्या बाग खून मैं सन ग्या । चील अर गीध मंडराण लाग्गे । एक गीध नैं सकंदक मुनी का खून मैं भऱ्या रजोहरण (ओग्या) मांस का टुकड़ा सिमझ के ठाया अर आपणी चोंच में दाब लिया। ओ उड़ के राजमैल पै जा बेठ्या । ओ ओघा मैल के चोंक मैं लै पड्या । यो देख
कै पुरंदरयसा के खटक लाग गी। बूज्झ्या ते सारी बात का बेरा लाग्या । - या दरदनाक बात सुण कै वा चिल्ली मार कै लै पड़ी। उसका जी संसार 1 के रिस्ते-नात्तां तै ऊब ग्या । उसनैं साध्वी दीक्सा ले ली।
थोड़ा टैम बीत्या । संकलप के मुताबक सकंदक मुनी अग्नीकुवार देवता बणे । आपणे सात्थियां गेल्लां भयानक रूप बणा के बाग के ऊपर मंडराण लाग्गे । अकासबाणी करी, “पाल्लक ! हुस्यार हो ले । ईब टैम आ ग्या सै । आपणे पाप का फल भोग्गण नैं त्यार हो ज्या ।"
न्यूं सुणतें-ए अकास ते आग बरसण लाग्गी | माड़ी वार मैं-ए सारा सैहर भसम हो गया । राज्जा, उसका घर-कुणबा, पाल्लक अर उसके सारे सात्थी जल के मर गे।
न्यूं सुणी सै अक कई साल ताईं ओडै आग बलती रही। उस जमीन मैं ईब “दंडकारण्य" कह्या करें सैं ।
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हरियाणवी जैन कथायें/68