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करणी अर भरणी
जितसतरू सरावस्ती नगरी का राज्जा था। ओ भगवान् महावीर का करड़ा भगत था । उसका एक छोरा था, सकंदक अर छोरी थी, पुरंदरयसा ।
जितसतरू नैं आपणी छोरी का ब्याह दंडक तै कर दिया। ओ कुम्भकारकटक का राज्जा था। धरम उसनैं भावै ए ना था । पुरंदरयसा धरमकरम मैं लाग्गी रैहूंदी। दंडक उसका मखौल उड़ाएं जांदा ।
जितसतरु की उमर हो ली थी। उसनैं सकंदक आपणा बारस बणा दिया था । सकंदक के बिचार धारमिक थे । ओ दरबार मैं धरम की चरचा भी करवाया करता ।
एक बर की बात सै। राज्जा दंडक का पिरोहूत था, पाल्लक । ओ सरावस्ती नगरी देक्खण आया। ओ दरबार देखणा चाहूवै था । आगले दन ओ दरबार मैं पहोंच्या । उसने ओड़ै देख्या- सकंदक धरम-चरचा करण लाग रहूया था। ओ तै धरम नैं चाहूवै - ए ना था । उसनै सकंदक तै सासतरारथ करण की कही । सकंदक नैं नरमाई तै मना कर दिया पर ओ घणा जिद्दी था । कोन्यां मान्ना । आक्खर मैं सकंदक नै सासतरारथ की हां भर दी ।
सासतरारथ सरू हो गया। माड़ी बार ताईं तै दंडक का पिरोहूत पाल्लक सकंदक के सुआलां का जुआब देंदा रहूया पर सकंदक के ग्यान आग्गे उसकी पार कोन्या बसाई । उसनें नीचा देखणा पडूया । ओ सासतरारथ मैं हार
हरियाणवी जैन कथायें / 64