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दो मास्से सोन्ना तै थोड़ा रहेगा। दो तोले मांगूं । यो भी थोड़ा पड़ेगा, जिब्बै-ए उसके दमाग में आई। फेर ते दो सेर सोन्ना मांगणा चहिए,जुकर घणे दन ताई ठाट तै गुजारा चाल्लें जा । एक दन तै यो भी खतम हो ज्यागा, जाएं तै दो मण सोन्ना मांगणा ठीक रहेगा। ____ कपिल न्यू ए सोच्चें गया । आक्खर मैं ओ इस नतीज्जे पै पहोंच्या , मन्नै राज्जा तै पूरा-ए राज मांग लेणा चहिए । राज्जा आग्गै ओ आपणी बात कह्ण आला-ए था, अक उसके दमाग में बीजली-सी चिमकी! एक नई बात उसके जी मैं आई-कपिल तन्नै धिक्कार सै! तू इतणा गिर ग्या, जो राज्जा तन्नैं इनाम देणा चाहूवै सै, तू उस्सै नैं बरबाद करण की सोच्चण लाग या सै। धिक्कार सै मन्नै, अर धिक्कार से मेरे जी की तिरिस्ना
फेर मैं के मांगू? कपिल सोच में डूब ग्या । उसके मूं पै एक रंग आंदा | अर चल्या जांदा। दूसरा रंग आंदा फेर तीसरा । चाणचक खुसी तै उसका मूं खिल ग्या । उन्नै सोच्ची-उमेद अर तिरिस्ना तै अकास की तरियां अनंत सैं । इनका कित्तै भी अंत कोन्यां । मांगण तै कदे झोली कोन्यां भरती। आदमी की तै आतमा मैं ए सब किमे सै।
कपिल चुप रहया । राजा ने टोक्या, “जो चहिए ओ मांग ले । बोलबाला क्यूं खड्या सै?”
फेर कपिल कण लाग्या- “म्हाराज ! जो मन्ने चहिए था, आज ओ मिल ग्या । मन्नैं आपणा आप्पा आड़े आ कै पिछाण लिया । मन्नें कदे भी जो ना सपड़े, आनंद का ईसा खुज्जाना मिल गया । ओ खुज्जाना सै
हरियाणवी जैन कथायें/12