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मामन सेट के बलद
बरसात के दन थे। रात के ग्यारा-बारा बाज रहे थे। चारू कान्नी घुप्प अंधेरा हो या था। घणे जोर की बारिस होण लाग हीं थी। जोर की बिजली चिमकी । महल्लां मैं सूती होई महाराणी चेलना की नींद टूट गी। बाहर के होण लाग या सै, यो देक्षण खात्तर वा राज मैहल की झांकी धोरै आई। चाणचक फेर जोर की बिजली चिमकी। बिजली के चांदणे मैं उन्नैं दीख्या अक एक आदमी नद्दी मैं खड्या सै । आई बर बिजली चिमकती रही अर राणी देखदी रही । राणी नैं देख्या- ओ आदमी माड़ी-माड़ी वार मैं कनारे पै आवै सै, किमै धरै सै अर फेर नद्दी मै उतर ज्या सै । राणी नैं सोच्ची कोए गरीब आदमी सै। नदी मैं बैहत्ती होई लाकड़ी कट्ठी करै सै । ओ हो! म्हारे राज मै भी कितणे गरीब लोग हैं सैं ? कितणी करड़ी मेहनत कर कै टैम काड्. सैं! न्यूं-ए सोचदी-सोचदी राणी आपणे पिलंग पै उलटी आ गी।।
राणी नैं सोण की कोसिस करी पर आंख ना लागी । वा राज्जा धोरै पहोंची। राज्जा आगै सारी बात बताई। राज्जा नैं सोच्ची- मैं तै इस धोखे मैं था अक मेरे राज मैं सारे मोज करें सैं । किस्से नै भी कोए दुख कोन्यां, फेर यो गरीब इतणी रात नैं ईसी करड़ी मेहनत क्यूं करण लाग या सै ?
राज्जा नैं नौकरां तै कही अक जाओ! नद्दी पै कोए आदमी लाकड़ी कट्ठी करै सै । उसके घर का बेरा काड्ढो । तड़के-ए उसनैं मेरे स्यांमी
मामन सेट के बलद/58