________________
एक दन मैं मुकती
द्वारका नगरी में सिरी किरसन जी राज कऱ्या करते । उनके छोटे भाई का नां था-गजसुकुमाल । सिरी किरसन आपणे भाई का घणा-ए लाड कऱ्या करते । बालक गजसुकुमाल के बिना मां देवकी अर बाब्बू वसुदेव पै माड़ी वार भी ना रया जा था । मां-बाब्बू अर भाई किरसन उसनें पूरे ध्यान तै पालण लाग रहे थे।
गजसुकुमाल जुआन होए। पढ़-लिख के वे काब्बल बण गे । द्वारका मैं उन का ना हो गया। चारूं कान्नी वे मसहूर हो गे। बात-ए ईसी थी। गजसुकुमाल घणे सुथरे थे अर अकलमंद भी थे। वे सरीर तै नाजुक भी थे। जाएं तै उनका नां गजसुकुमाल धऱ्या था । उन जीसा सुथरा जुआन उस टैम मैं कोए दूसरा ना था।
सिरी किरसन कै गजसुकुमाल नै देखदे-ए एक बात याद आ जांदी । जिब गजसुकुमाल पैदा भी ना होए थे, जिब एक देवता नैं आ कै उन तै कही थी- “थारे घरां एक छोटा भाई पैदा होवैगा पर ओ जुआनी की उमर मैं मुनी (साधू) बण ज्यागा ।" सिरी किरसन इस बात का करड़ा यान राख्या करते, अक ईसी कोए बात ना होवै, जिस तै गजसुकुमाल के बिराग हो ज्या।
एक बर भगवान् नेमीनाथ द्वारका नगरी के बाहर सहसर-आमर नां के बण मैं बिराज्जे । लोग्गां नैं बेरा पाट्या | उनके दरसनां खात्तर सबकै हुमाया चढ़ ग्या । भीड़ की भीड़ ओडै जाण लाग्गी । देवकी अर वासुदेव
एक दन मैं मुकती/53