Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 77
________________ सब नै उम्मेद हो गी अक ईब गजसुकुमाल कित्तै ना जावै । पर, राज्जा बणते-एं उन नैं हुकम दे दिया- मैं दीक्सा ल्यूंगा अर साधू बणूंगा। मेरी दीक्सा की त्यारी आज-ए अर इब्बै-ए करो । यो हुकम सुण के सारे चुप हो गे। राज्जा के स्यांमी कोए के बोलदा। राज्जा बणे होए गजसुकुमाल नैं उस्सै दन भगवान् नेमीनाथ के चरणां मैं साधू बणन की दीक्सा ले ली। साधू बणे पाच्छै गजसुकुमाल नैं भगवान तै बज्झ्या- "मुक्ती क्यूकर मिल्या करै?" परभू नैं बताया अक सूं-सां जंगा मैं, कै च्याणियां मैं रैह् कै ध्यान करो। न्यूं सुण कै गजसुकुमाल में समसाण में जा कै ध्यान करण की सोच्ची । सांझ का टैम था। भगवान की अग्या ले कै वे समसाण मैं ध्यान: करण चाल्ले गए । समसाण मैं मुनी गजसुकुमाल ध्यान की साधना मैं डूब गे। संसार की सोद्धी भी कोन्यां रही। चाणचक ओड़े तै सोमिल लिकडै था। उसनैं आपणा होण आला ! जमाई साढू बण्या देख्या तै उसनैं इतणा छोह आया अक ओ बौला हो ग्या । छोह मैं भर के उसनैं धोरे के जोहड़ मैं तै माट्टी काड्ढी अर ध्यान में खड़े होए गजसुकुमाल के सिर पै चारूं कान्नी पाल बांध दी । फेर उसमें लाल सुरख अंगारे धर दिए। फेर ओ घरां आ गया । गजसुकुमाल आपणी साधना तै कोन्यां डिग्गे । उनका सिर जलै था। मांस-मज्जा भी जलण लाग्गी पर गजसुकुमाल मुनी सान्ती ते ध्यान मैं खड़े रहे । उन नैं सोच्ची- “इसके खात्तर किस्से तै दोस देणा ठीक नहीं । यो तै आपणे-आपणे करमां का फल सै | आच्छा होया! ईब ये करम भी आज्जै हमेसां के लिए भसम हो ज्यांगे ।” एक दन मैं मुकती/551

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