Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 76
________________ भी सिरी किरसन गेल्लां दरसन करण जाण की चुपचाप त्यारी करण लाग्गे । फेर भी गजसुकुमाल नै वे जान्दे देख लिए। उन तै आप भी गेल्लां जाण की बात कही। वे उसके जाण के बारे मैं टालमटोल करदे रहे पर उसकी जिद के आग्गै उन नैं झुकणा पड्या । वे सारे के सारे कट्टे हो के चाल पड़े। राह मैं किरसन जी नैं पांच-सात छोरी आपस में खेलती देक्खी । उनकी निगाह में एक सुथरी छोरी आई। उन नैं गजसुकुमाल का ब्याह उस छोरी तै करण की सोच्ची । बूज्झ्या तै बेरा लाग्या अक उस छोरी का नां सोमा सै । वा सोमिल बाह्मण की छोरी सै । किरसन जी नै सोमिल धोरै गजसुकुमाल के ब्याह की बात भिजवा दी। उस बात नैं सुण के सोमिल के सूखे धान्नां मैं पाणी आ गया। ____ सारे भगवान् नेमीनाथ के समोसरण मैं पहोंचे । सबनें भगवान तै धरम की बाणी सुणी अर घरां आ गे । भगवान् नेमीनाथ की देसणा सुण कै गजसुकुमाल के बिचार बदल गे। उन नैं दीक्सा लेण का पक्का फैसला कर लिया। मां-बाब्बू नैं बेरा पाट्या । उन नैं भोत दुःख होया। वे गजसुकुमाल नैं सिमझाण लाग्गे। पर गजसुकुमाल कोन्यां मान्ने । जिब्बै-ए ओडै सिरी किरसन आ गे। उन नैं भी आपणा छोट्टा भाई तरां-तरां की बात्तां तै सिमझाया। ढाल-ढाल के लालच दिए। गजसुकुमाल कोन्यां मान्ने । आक्खर मैं सिरी किरसन नैं कही, "रै भाई! तू राज-घराणे मैं पैदा होया सै | जाएं तै तू एक बर हमनैं राज करके दिखा दे ।" इस बात पै गजसुकुमाल चुप हो गे । दूसरे-ए दिन सिरी किरसन जी नैं ओ द्वारका के राज्जा बणा दिए। हरियाणवी जैन कथायें/54

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