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बैट्ठे-बैठे, भित्तर-ए-भित्तर भगवान महावीर आग्गै हाथ जोड़ लिए।
उस नगरी मैं भगवान का एक भगत रहूया करदा । उसका नां थासुदरसन । उसने मां-बाप तै कही, “मैं भगवान महावीर के दरसन करण जाऊं सूं । मन्नैं आग्या दूयो ।” न्यूं सुण कै मां-बाप नैं उसतै अरजन माली के खतरनाक कारनाम्मे बताए, अर उस ते घरां-ए बैटै रैहूण की रै दी । सुदरसन नैं कही, “भगवान महावीर पधारें अर मैं उनके दरसन ना कर कैं, घरां-ए पड्या रहूं, या मेरे बस की बात कोन्यां । चाहे मन्नैं मरणा पड़ै पर मैं भगवान के दरसन करण जरूर जांगा ।" न्यूं कहू कै ओ बाग कान्नीं चाल पड्या ।
अरजन माली नैं सुदरसन आता दीख्या । उसनै मोद्गरा तणा लिया । सोच्चा- घणे दन पाछे यो सिकार हाथ आया सै । ओ आग्गै चाल्या । सुदरसन नैं अरजन आंदा दीख्या । ओ सिमझ ग्या, ईब मुसीबत आण आली सै। इस टैम भगवान का सुमरण करणा चहिए । फेर सुदरसन जमीन पै पलोथी ला कै बैठ गया । उसनें ओड़े तै- ए भगवान महावीर की बंदना करी/अर भित्तर-ए-भित्तर नमोक्कार मंतर पडूढण लाग्या । उसके भित्तर पहाड़ बरगी शान्ती थी ।
गुस्से मैं भर के हाथ मैं मोद्गर तणाएं अरजन तौला - सा ओड़े-ए पहोंच लिया । उसने सुदरसन पै मोद्गर खैच के मारण की कोसिस करी, पर देक्खो ताज्जब की बात.... अरजन का हाथ हवा मैं-ए थम गया। पहल्यां तैं न्यूं कदे ना होई थी । उसनें आपणी पूरी ताक्कत अजमा ली पर सुदरसन कै मोद्गर लाग्या कोन्यां । आक्खर मैं अरजन माली के सरीर मैं जो देवता बड़ रहूया था, उसकी ताक्कत धरम की मूरत बणे होए सुदरसन के आग्गै हीणी
हरियाणवी जैन कथायें / 26