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न्यू सुण कै बाहूमण राज्जी कोन्यां होए । बोल्ले, "म्हाराज! पहल्यां जो रूप देख्या था उसमें नरोगता थी अर बनावट भी ना थी। पर ईब तै यो रूप बनावट नै घेर राख्या सै । ईब ओ रूप कोन्यां जो पहल्यां था । " राज्जा इस जुआब नैं सुण कै हैरान होया । बोल्या, “पर मेरा सरीर तै ओ-ए सै । फेर थम ईसी बात क्यूकर कहो सो ?”
“ईब थारा सरीर बेमारियां का घर हो लिया सै। जै अकीन ना आता हो तै थम माड़ी वार पाछै आप-ए देख लियो । सच्चाई का बेरा पाट ज्यागा । "
राज्जा नैं बाहूमणां की बात्तां पै कती इतबार कोन्यां आया । फेर भी भित्तर-ए-भित्तर सोच्ची-माड़ी वार देख ल्यूं । इसमें मेरा के जा सै ? राज्जा बोल-बाला बैठ गया । माड़ी वार पाछै राजा नैं आपने हाथ पां देखे तै सरम की मारी उसका सिर तले नैं हो गया। सारा सरीर काला पड़ लिया था । सुथराई बेरा ना कित चाल्ली गई थी। राज्जा के कोढ़ फूटूयाया था। किस्से नैं भी राज्जा के सरीर की इस हालत पै यकीन कोन्यां होवै था पर सच्चाई तै सच्चाई -ए थी । राज्जा नै आपणा सरीर आच्छी तरियां देख्या । यो ओ हे सरीर था जिसकी बड़ाई करते-करते दुनिया बौली हो लिया करै थी। आज उस्से सरीर मैं कै बांस आण लाग री थी । कोए बड़ाई करण तै दूर, उसके कान्नी लखावै भी ना था । बाहूमण चले गये ।
सनत्कुमार नै जिब्बै- ए ग्यान होया अक, जिस सुथराई पै मन्नै घमण्ड था, आज वा हे बदलगी। जुकर यो सरीर भी मेरा कोन्यां होया न्यूं-ए या दुनिया भी कदे किस्से की ना होती । उसका भित्तरला उसनें बार-बार बिरागी बणन नै कैहू था ।
हरियाणवी जैन कथायें / 40