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सुथराई का घमण्ड
एक बर इंदर म्हाराज नैं देवत्यां की पंच्यात मैं एक बात कही-“इस टैम धरती पै सनत्कुमार चक्करवरती बरगा राज्जा कोए दूसरा कोन्यां । उसकी हिम्मत का, धन-दौलत का, धीरज का अर अकलमंदी का मुकाबला कोए कर नहीं सकता। सब तैं बड्डी बात या सै अक ओ जितणा सुथरा जुआन सै, उतणा तै देवत्यां मैं भी कोए सुथरा कोन्यां ।”
न्यूं सुण के सारे देवता सनत्कुमार की घणी-ए बड़ाई करण लाग गे। ओडै दो देवता इसे थे, जिन पै सनत्कुमार की इतणी बडाई बरदास कोन्यां होई। उनके नां थे विजय अर वैजयन्त । दोनूं ऊठ के खड़े हो गे । बोल्ले,"म्हाराज ! थारी बात पै हाम नै सक सै। धरती तै घणी-ए लाम्बी-चौड़ी सै। फेर थामनै एकले सनत्कुमार की तारीफ मैं ओड बड्डी-बड्डी बात क्यूकर कह दी ? अर ओ देवत्यां तै भी घणा सुथरा सै या बात म्हारी सिमझ मैं कोन्यां आई। जो थारी इजाजत हो तो हम सनत्कुमार का हिंतान ले के देखें?" इन्दर नै होट्ठां भित्तर हांसते होए उन दोनुआं तै सनत्कुमार का हिंतान लेण की छूट दे दी।
दोन्नूं देवां नै बुड्ढे बाह्मणां का भेस भऱ्या अर चक्करवरती सनत्कुमार की राजधानी हथनापुर मैं पहोंच गे। महल में बड़न लाग्गे तै पहरेदार नैं टोक्के, “महल मैं थम क्यूं बड़ो सो? किस तै के काम सै?"
बाह्मण बोल्ये – “हम चक्करवरती सनत्कुमार के दरसन करणा चाहवें सें ।” “थम नैं माड़ी वार आड़े-ए डटणा पड़ेगा। म्हाराज तो इब्बै न्हाण
सुथराई का घमण्ड/37