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आतम-ग्यान का । संसारिक धन ले कै ईब मैं के करूंगा?”
न्यूं कह के कपिल नैं उस्सै टैम आपणे हात्थां ते आपणे बाला का लोच कर लिया । सब किमे छोड दिया । मुनी-धरम की दिक्सा ले ली। कई बरसां तांईं, करड़ा तप कऱ्या । आपणी आतमा सुद्ध बणा ली अर हमेस्सा खात्तर, तिरिस्ना अर मोह के कैदखान्ने तै छूट गया। उसनै केवल ग्यान हो ग्या, अर आक्खर मैं मुकती मैं गया।
आनंद का खुज्जाना/13