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"कोए टैम था, जिब मैं भी संसार की चिमक मैं बौला हो रहूया था। मेरै भी धन दोलत थी, नोकर-चाक्कर थे, किसे भी चीज की कमी ना थी पर एक दन.... साधू नै बात आद्धम छोड दी । ”
"“ पूरी बात बताओ जी।” राज्जा नै बेनती करी ।
“एक दन मेरी आंख्यां मैं तकलीफ हो गी । दूर-दूर तै बैद बलाए । रपिया - पीसा घणा-ए लाया। मेरे मां-बाप, भाई- बाहूण, रिस्ते-नात्ते मेरी तकलीफ तै दुखी थे पर कोए मन्नैं ठीक नहीं कर सके । मन्नै मैसूस करूया, अक मैं अनाथ सूं मेरी तकलीफ तो किस्से के भी बस की कोन्यां थी । मन्नै न्यू लाग्या, अक इस दरद नैं कोए ओर ठीक कोन्यां कर सकदा । ऊसी हालत मैं, मैं कती अनाथ बरगा था। मेरे घर के भी अनाथ थे। मेरे जी मैं आई- एक यो सरीर तै खतम होणा सै। सब कुछ सै तै बस आतमा-ए सै । मन्नै सरीर का ध्यान छोड कै नै, आतमा का ध्यान करणा चहिए । न्यूं- ए सोच्चण लाग रहूया था अक मन्नैं नींद आ गी। मैं तड़कें उट्या । मेरी आंख्यां की बेमारी ठीक हो गी थी। फेर मैं आतमा की सच्चाई टोहूण खातर घर तै लिकड़ आया । अर साधू बण ग्या । ईब मन्नैं सच्चाई का बेरा काढ़ लिया सै । आतमा-ए नाथ सै। ओए साच्चा साथी सै। धन-दौलत अर मस्हूरी कदे किस्से के भी साच्चे हमदरद कोन्यां होए। जै मेरी बातां तै थम नैं तकलीफ होई हो तै मन्नै छिमा करियो ।” न्यूं कह के साधू चुप्प हो गे ।
राज्जा सरेणिक का सारा नसा झड़ लिया था। ओ हाथ जोड़ कै बोल्या, “आज तै मैं आपणे-आप नैं घणी किसमत आला जाणूं सूं । थम नैं मेरी आंख खोल दी ?" न्यू कह के राज्जा साधू के पायां मैं पड़ गया ।
साधू तै ग्यान ले के सरेणिक उलटा आया। उस दन तै ओ धरम नैं मान्नण आला अर दया करण आला बण ग्या ।
ग्यान देण आले उस साधू का नां अनाथी मुनि था ।
हरियाणवी जैन कथायें / 22