Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 25
________________ "हे परभू! ईसे आच्छे-आच्छे काम करण आला का भी बेमारी तै पांडा ना छूटता?" गोत्तम नैं बीच मैं-ए हाथ जोड़ के बूज्झ्या । “हां गोत्तम! न्यू ए होया करै । जो मूंडे करम आदमी नैं पहल्यां कर राक्खे हों, जिब ताईं उनका फल ना भोग ले, वे कटते कोन्यां। ओं आपणे टैम पै परगट होया करें । उदै मैं आया करें । करमां की दुआई बैद धोरै ना होती। हे गोत्तम! नंदन मनियार बेमारी ते छूट्या कोन्यां । आग्गै सुणो- नंदन मनियार घणा-ए नाउमेद हो गया । आक्खर मैं उसने एक बेमारी खतम करण खात्तर भारी इनाम अर पीशे देण की डूंडी पिटवाई, पर वा भी बेकार गई। उसका किस्से भी तरियां इलाज ना होया । उसकी उमेद टूट गी। मरण का टैम नजदीक आता रहूया । उसका जी उसकी बणवाई होई बौड़ी मैं लाग्या रइया । धरम-ध्यान उसका छूट गया । टैम आया, अर ओ मर गया। ... ओ नंदन मनियार सेट मरें पाछै आपणी बौड़ी मैं मींडक के रूप मैं पैदा हो या । बौड़ी पै आन्दे-जान्दे, नहान्दे, अराम करण आले, बेमारियां तै छूट्टण आले, सारे लोग दान लेत्ते, अलंकार लेत्ते अर सदाबरत की रोटी खान्दे होए लोग नंदन मनियार की दिन-रात बडाई कर-कर के छिक्या ना करते । मींडक बौड़ी मैं रह्दै था। ओ बार-बार नंदन मनियार का नां सुणदा रया, सुणदा रह्या । ओ भित्तर-ए भित्तर सोच्चण लाग्या, 'यो नंदन मनियार कुण था? यो नाम तै ईसा लाग्गै सै जाणुं सुण राख्या हो!' दन-रात उसके कान्नां मैं पड़ती होई बात एक दन उसके दमाग मैं आ गी। उस के आपणा पाछला जनम याद आ ग्या। ओ समझ ग्या, अक परभू के दरसन/3

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