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बरतां में जम ग्या । उसनैं आपणा सरीर छोडती हाणां मेरी बंदना करी। नमोक्कार मंतर पढ्या, अर सरीर छोड दिया ।”
"भंते! फेर के होया? यो बताण की भी किरपा करो ।”
"हे गोत्तम! मींडक देवलोक मैं देव बण ग्या। देव बण के भी मींडक | के जनम मैं करे होए पुन्न तै उसका ध्यान धरम मैं लाग्या रह्या । जाएं तै यो तीर्थंकर की बंदना करण खात्तर वैक्रीय सरीर (एक सरीर तै कई रुप बणान की बिद्या) धारण कर के आड़े आया था । वैक्रीय सरीर जिब गैब होवै सै तै उसका कोए कानुन कोन्यां होंदा । ओ असमान में चिमकी होई बिजली की तरियां गैब हो ज्या सै ।” ____ “भगवान! या साच्ची कहाणी सुण कै आज मैं हैरान सूं । इस कथा तै मन्नैं बेरा पाट्या अक किस्से भी आदमी मैं या चीज मैं मोह का के नतीज्जा हो सै!"
“गोत्तम! लिए होए बरत तोड़ण तै सरधा भी झूट्ठी हो ज्या सै ।” |
“भगवान! आप नै जो बात बताई, उस पै मेरी पूरी सरधा सै ।” न्यू | कह कै गोत्तम भगवान के चरणां मैं झुक गे ।
हरियाणवी जैन कथायें/6