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परभू के दरसन
एक बर राजगीर के गुणशील बाग मैं भगवान महावीर के दरसन करण राज्जा सरेणिक ठाठ-बाट गेल्यां आया । दरसन करकै ओ आपणे महलां मैं चाल्या गया । उसके जाएं पाछै, माड़ी ए वार होई थी, अक एक ओर अजनबी-सा राज्जा उनके दरसन करण आया। ओ सरेणिक तै घणा-ए सुथरा था। उसकी गेल्यां सरेणिक तै सो गुणे सेवक अर लोग-लुगाई थे। उसके अरथ, हात्थी, घोड़े अर दास-दास्सी भी घणे-ए सुथरे अर सब तै न्यारे चिमकण आले थे।
इन्दरभूती गोत्तम (जो महावीर के चेल्ले थे) के देखते-ए-देख्त्यां वे सारे न्यूं गैब हो गे जाणुं असमान में बिजली चिमकी हो, अर जिब्बै-ए गैब हो गी हो । यो देख कै गोत्तम स्वामी नैं घणा ताज्जब होया। उन नैं भगवान महावीर स्वामी की बंदना करी अर सुआल बूज्झ्या
“हे परभू! मन्– आपणी आंख्यां तै ईसा कोए दरसन करण आला नहीं दीख्या जो आंधी-बिजली की तरियां आया हो अर चाणचक हवा की तरियां गैब हो गया हो । हे भगवान! यो कुण से मुलक का राज्जा था, मेरे तै बताण की किरपा करो ।"
भगवान बोल्ले, “हे गोत्तम! यो किसे मुलक का राज्जा ना था। यो तै दर्दुर नां का देव था । तम नैं ठीक बूझी, अक यो बिजली की तरियां आया अर आंधी की तरियां चाल्या क्यूं गया?"
"हां भगवान! मैं यो हे जाणना चाहूं सूं ।"