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अध्ययन शब्दार्थ . भावार्थ सह), २२. रत्नाकरपच्चीसी (शब्दार्थ-भावार्थ सह), २३. श्री मोहनजीवनादर्श, २४. नवपद पूजा (श्री राजेन्द्रसूरिजी कृत), २५. श्री गुरुदेव भजनमाला, २६. देववन्दन माला (तीसरी आवृत्ति), २७. गुंहली-विलास (द्वितीय भाग), २८. श्री गुणानुरागकुलकम् - (विस्तृत विवेचन, शब्दार्थ-भावार्थ और संस्कृत छाया सहित), २९. श्रीयतीन्द्रसेवाफल सुधापान, ३. श्री गुरुदेव गुण-तरंगिणी, ३१. श्री यतीन्द्र विहारादर्श; ये इकतीस पुष्प प्रकाशित हो चुके हैं। इसके सभी पुष्प प्रायः मुफ्त में वितरण किए जाते हैं और प्रत्येक पुष्प अतिसुन्दर शुद्धतापूर्वक प्रकाशित होता है।
ग्रंथ रचना - . - आप संस्कृत-प्राकृत भाषा के ज्ञाता होने पर भी हिन्दी के अच्छे सुलेखक हैं। आपके रचित सरस और भावपूर्ण हिन्दी-ग्रंथों ने अच्छी कदर पाई है। उनकी सरस्वती, माधुरी आदि हिन्दी पत्रिकाओं के सम्पादकों ने मुक्त-कंठ से प्रसंसा की है। आपके रचित हिन्दी-ग्रंथों की
सूची इस प्रकार है - .. १. तीन स्तुति की प्राचीनता - यह पुलिश्केप् १६ पेजी साइज में एक फार्म की किताब है, जो संवत् १९६३ में श्री श्वेताम्बराभ्युदय राजेन्द्र जैन लायब्रेरी जावरा के तरफ से छपी है। इसमें जैनागमों के और ऐतिहासिक प्रमाण देकर तीन स्तुति की प्राचीनता सिद्ध की गई है। पुस्तक छोटी होने पर भी बड़े महत्व की है।
२. भावना स्वरूप - आकार सुपर रॉयल १६ पेजी, पृष्ठ संख्या १६ है। मूल्य एक आना है। यह सं. १९६५ में श्री जैन प्रभाकर प्रिन्टिंग प्रेस, रतलाम में अभिधान - राजेन्द्र कार्यालय की ओर से छपी है। यह अनित्यादि बारह भावनाओं का अत्यल्प स्वरूप जानने के लिए अच्छे वैराग्य-रस की पोषक है।