Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 4 . ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन आगम कहा जाता है। (4) आवश्यकवृत्ति में आचार्य मलयगिरि ने आगम को परिभाषित करते हुए कहा है- जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान प्राप्त हो उसे आगम कहते हैं।२ (5) विशेषावश्यक भाष्यकार ने प्रतिपादित किया है कि जिससे सही शिक्षा या विशेष ज्ञान प्राप्त होता है, वह शास्त्र है, आगम है या श्रुतज्ञान है।३ (6) मूलाचार में आचार्य वट्टकेर ने कहा है- सूत्र गणधर कथित हैं, उन्हें प्रत्येक . बुद्धों द्वारा प्रतिपादित किया गया है तथा वही श्रुतकेवलियों द्वारा कथित दशपूर्वी ज्ञान आगम है। (7) स्याद्वादमन्जरी में आप्त वचन को आगम माना गया है। उपचार से आप्त वचन से उत्पन्न अर्थज्ञान आगम है।५ (8) जिससे वस्तुतत्त्व का परिपूर्ण ज्ञान हो वह आगम है।६ (9) जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो वह आगम है। (10) जो तत्त्व आचार परम्परा से सुवासित होकर आता है, वह आगम कहलाता हैं।८ - 1. 'अत्थं भासइ अरहा, सुतं गंथति गणहरा णिउणं। सासणस्स हियट्ठाए तओ सुत्तं तित्थं पवत्तइ॥ आवश्यकनियुक्ति, 1/92. धवला टीका, भाग 1, पृ. 64 व 72. 2. आ-अभिविधिना सकलश्रुत-विषय-व्याप्ति-रूपेण, मर्यादया व यथावस्थित परूपणा रुपया गम्यन्ते- परिच्छिद्यन्ते अर्थाः येन स: आगमः। आवश्यक (वृत्ति) मलयागिरि. 3. सासिज्जइ जेण तयं सत्थं तं चाऽविसेसियं नाण। ___आगम एव य सत्थं आगमसत्थं तु सुयनाणं।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा-५५९. सुत्तं गणहरकहिदं तहेव पत्तेयबुद्धकहिदं च। सुदकेवलिणा कहिदं अभिण्णदसपुव्वकहिदं च।। मूलाचार, 5/277. 5. आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः। उपचारादाप्तवचनं च।' स्याद्वादमंजरी,अनु०-डॉ०जगदीशचन्द्र जैन, श्लोक-३८. 6. आसमन्ताद् गम्यते वस्तुतत्त्वमनेने त्यागमः। रत्नाकरावतारिका वृति-५८. 7. आगम्यन्ते मर्यादयाऽव बुद्धयन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः रत्नाकरावतारिकावृति. 8. आगच्छत्याचार्यपरम्पराया वासनाद्वारेणेत्यागमः। सिद्धसेणगणिकृति-भाष्यानुसारिणी टीका, पृ०-८७. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org