Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 128 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन 11. विधि एवं आज्ञार्थक एकवचन बहुवचन प्रथम पुरुष होउ 2/20 पडिच्छंतु 1/156, गच्छंतु 16/211 नोट:- धवेज्जा 5/37, 5/38 मध्यम पुरुष गच्छाहि, कप्पेहि 1/139 पक्खालेह, संदिसह 1/139, जिणाहि, पालेहि, वालाहि मा पडिबंध करेह 1/197, 1/198, 1/154, गेणहाहि, विहराहि ठावेह 8/148 - . ७/६,जाएज्जा 7/6 भवेज्जाह, गच्छेज्जाह 9/25 गच्छ 1/154 उत्तम पुरुष गच्छमु गच्छमो नोट:(१) विधि आज्ञार्थक में प्रत्ययों से पूर्व भी "अ' का “ए'' ही प्राय: होता है। - जैसे- “णिवेसेह" 16/215 (2) विधि एवं आज्ञार्थक में “ज्जा' प्रत्ययों के प्रयोग भी होते हैं "ज्ज' और _ "ज्जा" ये दोनों ही प्रत्यय प्रथम पुरुष एकवचन, बहुवचन में समान रूप से ही होते हैं। जैसे- धोवेज्जा 5/37, (प्रथम पुरुष एकवचन) जाएज्जा 7/ 6, (मध्यम पुरुष एकवचन), गच्छेज्जाह 9/25, (मध्यम पुरुष बहुवचन)। (3) विधि आज्ञार्थक में “ज्ज” और “ज्जा' के प्रयोग के बाद इनके प्रत्ययों का भी प्रयोग होता है। जैसे- "भवेज्जाह' 9/25 / (4) मध्यम पुरुष के एकवचन में “हि' प्रत्यय से पूर्व दीर्घ का प्रयोग भी हुआ है जैसे- “तारयाहि” “पालयामि' 9/36 / (5) मध्यम पुरुष के बहुवचन में भी "ह" से पूर्व दीर्घ हो गया। जैसे “णो आढाह" “णो परियाणह' 9/36 / 29. वर्तमान कृदन्त न्त- जलन्ते 1/205, अभिनंदता 8/56 माण- दलयमाणे पडिच्छेमाणे 1/92 (पुल्लिंग) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org