Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 132 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन कल्ल 2/12, 12 (कल) तडतड- 9/10 चप्पुडियाए 3/25 (चुटकी) फुट्ट (फूटना) 9/10 उंबर 5/23 (उदुम्बर) हाहाकय- हाहाकार 9/10 घंट 1/113 (घण्टा) चोक्खा (चोखा) 8/110 छोल्ल 7/8 (छोलना) भुज्जो-भज्जो (बार-बार) 1/72 उसीसा 7/8 (तकिया) पल्ल 7/18 कोठार .. खुड्डांग 7/9 37. सन्धि जब किसी शब्द में दो वर्ण पास आने पर मिल जाते हैं तो उनसे उत्पन्न होने वाले विकार को सन्धि कहते हैं। ज्ञाताधर्मकथा में सन्धि विकल्प से है नित्य नहीं। यथान्तेणामेवउवागच्छ 1/4, ज्ञाताधर्मकथा में सन्धि के तीन भेद हैं- स्वर सन्धि, व्यञ्जन सन्धि, अव्यय सन्धि। (अ) ज्ञाताधर्मकथा में स्वर सन्धि- ज्ञाताधर्मकथा में चार तरह के स्वर सन्धि मिलते हैं- दीर्घ, गुण, हस्व दीर्घ और प्रकृति भाव या सन्धि निषेध। दीर्घ सन्धि- महतिमहालियाए 1/114, महति- महा- आलियाए (आ-आआ) सव्वालंकार विभूसिए 1/113, सव्व-अलंकार विभूसिए (अ-अ-आ) समणाउसो 4/10 गुण सन्धि- झाणकोट्ठोवगए 1/6 झाग-कोट्ठा- उवगए (अ-उ-ओ) सव्वोउय 3/2 सव्व-उउय नागेंद-नाग-इंद 8/177, इमेया इम- इया 8/153 / ह्रस्व दीर्घ सन्धि- ज्ञाताधर्म में सामासिक पदों में ह्रस्व का दीर्घ और दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है- एयात्त्वे- एयरूवे 1/63 / दीर्घ का दीर्घ- इत्थीसएहिं 8/183 दीर्घ का ह्रस्व- इत्थिणामगोयं 8/13 इत्थीणाम पुढ़विसिलापट्टय 1/212 प्रकृति भाव सन्धि– सन्धिकार्य के न होने को प्रकृतिभाव सन्धि कहते हैं। तुम इओ तच्चे अईए 1/164, हंता अढे 1/163 मेहा इ समणे 1/163, आयरिय उवज्झायणं 4/10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org