Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 148
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण 135 केई (कोई) जइ णं केइ 16/74 कयाई (कभी, भी) अन्नया कयाई 13/9 कहिं (कहाँ पर) कहिं गया 13/5 कहिं चि (कहीं) ईसरस्स वा कहिंचि 8/119 खलु (निश्चयवाचक या ही) एवं खलु सामी 1/56 च (और, तथा) . चुलसीइं च 8/192 केइ कहिंचि (कोई कहीं पर) केइ कहिं चि अच्छेरए 8/76 जं (जिस समय) जं समयं 8/182 ण (निषेधवाचक). तं ण णज्जइ 14/46 णं (क्योंकि) . वाक्य की शोभा के लिए भी णं का प्रयोग किया जाता है। पासित्ता णं 1/18 तं (उसी) तं समयं 8/182 तत्थ तत्थ वि य 14/49 तंजहा (भय के रूप में प्रयोग होता है।) 14/47 तओ (इसके पश्चात्) 7/6 तएणं 14/33 तहेव (उसी तरह) तहेव जक्खे 9/57 तखे भज्जणं 8/85 ताहे (उससे) तहि तब्मे वदह 9/37 तो (तब) . तो हं विसज्जेमि 14/35 तम्हा (इसलिए) तम्हा पवयणसारे 9/59 तहा (तथा, और तो) तहा पच्चक्खाएयब्वे 8/65 तह (तथा) तह त्ति पडिसुणेइ 14/42 तामेव (वही) तामेव दिसिं पडिगए 1/85 14/47, 48 / ज्ञाताधर्मकथा में निश्चयवाचक अव्यय का प्रयोग पर्याप्त हुआ है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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