Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 160
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 147 जाती थी। शिक्षा सभी वर्गों को सुलभ थी। यह प्राय: एकान्त जगहों पर दी जाती थी।१ बालक जब आठ वर्ष का हो जाता था तो माता-पिता शुभ तिथि तथा शुभ मुहूर्त में उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए कलाचार्य के पास भेज देते थे।२ शिक्षकों को बड़ा ही आदर एवं सम्मान प्राप्त था। उन्हें समय-समय पर प्रीतिदान एवं पारितोषिक भी मिलते रहते थे। ज्ञाताधर्मकथा में कला प्राचीनकाल में शिक्षार्थी को चार वेद, छ: वेदांगों, न्याय, पुराण, धर्मशास्त्र, गणितशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र एवं छन्दशास्त्र में प्रवीण कराया जाता था।" जैन सूत्रों से यह विदित होता है कि बालकों को कलाचार्य के पास भेजकर बहत्तर प्रकार की कलाओं में प्रवीण कराया जाता था। फलत: उनके नौ अंग दो नेत्र, दो कान, दो नाक, जिह्वा, त्वचा और मन जो बाल्यावस्था अपरिपक्वावस्था में रहते थे वे परिपक्व हो जाते थे।५ ज्ञाताधर्मकथा में बहत्तर कलाओं का विस्तृत विवेचन मिलता है। ज्ञाताधर्म में भाषा ज्ञाताधर्म में चार प्रकार की वाणी/भाषा का उल्लेख प्राप्त होता है(१) आख्यापना- सामान्य रूप से प्रतिपादित करनेवाली वाणी। (2) प्रज्ञापना - विशेष रूप से प्रतिपादित करनेवाली वाणी। (3) संज्ञापना - सम्बोधन करनेवाली वाणी / (4) विज्ञापना - अनुनय विनय करनेवाली वाणी।६ वस्त्र एव वेशभूषा ... आचारांग की भाँति ज्ञाताधर्म में भी विविध प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है। आचारांग में छ: प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख हुआ है- जांगमिक, भांगिक, सानिक, पोत्रक, लामिक और तूलकृत। इन छ: प्रकार के वस्त्रों को मनि धारण करते थे। साध्वी चार संघाटिका (चादर) धारण करती थीं। चादर एक, दो या तीन हाथ प्रमाण . ज्ञाताधर्मकथांग 1/98. 1. वही, अचारांग 2-2/412. 2. 3. वही, 1/100. 4. विपाकसूत्र 4/5, उत्तराध्ययन सूत्र 14/3.. 5. ज्ञाताधर्मकथांग 1/101. 6. वही, 1/27.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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