Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 147
________________ वि 134 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन उंव उवक्खडावेइ 7/5 अणु अणुगिलइ 7/8, अणुपुव्वेणं 7/10 संगोवंति, संरक्खंति 7/10 विप्पवसियंसि 7/4 नि निज्जाएमि (लौटुंगा) 7/28, पडि - पडि 7/28, पडिजागरमाणी 7/25 वि विहरामि 7/25, विहाडेइ 7/24 सुं सुमित्त 8/184 (2) क्रिया विशेषण ज्ञाताधर्मकथा में कई तरह के क्रिया विशेषण अव्यय प्राप्त होते हैंअ 1/198 वाक्य पूर्ति, वाक्य पूरक अव्यय एवं आदि के अर्थ . में होता है। अण्णया (कभी) अण्णया कयाई 13/9 . अण्ण्हा (अन्यथा, अन्य रूप) अण्णहमे न याणामि 9/37 अंतो. सा पउमावई अंतो अंतेउरंसि 8/43 अवि (भी) अवि याइं अहं 16/57 . अह (अनन्तर, अगर किन्तु) 14/35 अहो (अरे) अहोणं इमा 16/74 इवा (अथवा, या, वा). 14/47 इहं (यहाँ) गिहाओ इहं हव्वमागए 16/56 उवरिं 9/48 उ (तो, फिर) जक्खे उ सेलए 9/57 एवं (इस प्रकार) 14/34 कओ (कहाँ) 14/5 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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