Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 136 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन न हु (नहीं) न हु जुज्जसि 9/52 पुरओ (सामने) पुरओ रोहिणियं 7/30 परं (अत्यन्त) परं सायासाक्खमणुडभवमाणे विहरइ 13/20 पिव (तरह समान) धाराहयकलबगं पिव१३/२० पिट्ठओ (पीछे) पिट्ठओ अणुगच्छइ 1/81 भो (सम्बोधनवाचक) भो समणा माहणा 14/50 मा (निषेधवाचव) मा पडिबंध करेह 14/36 जं णं सागरदत्तए 16/55 (वाक्यालंकर के लिए इसका प्रयोग होता है) जहा व सा रोहिणीया 7/31, जहा देवाणंदा. 14/37 जाव भए जाव 14/40 जओ (जिससे) जओ णं बहवे 1/110 जम्हा (जहाँ) जम्हा णे अम्हं 1/95 जामेव (उसी) जामेव दिसिं पाउन्भूए 1/85 यावि (जो भी) यावि होत्था 14/38 / सव्वओ (सभी ओर) सव्वओ समंता आहिंडति 1/82 साणीयं 14/40 सीसयं (समान) सरिसयं कुंडलजुयलं 8/89 सद्धिं (साथ) सेणाए सद्धिं 8/51 हा हा (खेदवाचक) हा हा अहा अकज्ज 16/20 (3) समुच्चय बोधक अव्यय जिस अव्यय से एक वाक्य दूसरे वाक्य में समाहित होता है उसे समुच्चयबोधक अव्यय कहते है। इसके सात भेद हैं(अ) संयोजक- य--अहं पि य ण 16/218, दोवई य देवी 16/219, दोच्चं पि 19/27 / साणीयं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org