Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भाषा विश्लेषण 129 माण- रोयमणी, कंदमाणी, तिप्पमाणी, सोयमाणी, विलवमाणी 1/120, संगोवेमाणीय, संवइढेमाणीए 7/9 (स्त्रीलिंग) 20. विधि कृदन्त तव्व- गंतव्वं 1/191 . यव्व- जइयव्वं, घडियव्वं, परक्कमियव्वं 5/23, भाणियव्वा 5/51, 8/30 / एव्व- पमाएव्वं 5/23, संदोएव्वी 8/30 31. सम्बन्य कृदन्त ऊणं- गिण्हिऊणं 2/11, टु- कटु 1/135, 2/12 च्चा- सोच्चा 1/89, 2/25, किच्चा 6/5, समेच्चा 8/8 त्ता- करित्ता 1/90, सदृवित्ता 1/91, फासित्ता, पालित्तता, सोहत्ता, तीरेत्ता, किट्टेत्ता 1/196 म्म- णिसम्म 1/89, आय- गहाय 1/138, 2/34 32. तद्वित प्रयोग ज्ञाताधर्मकथा में तद्वित प्रत्ययों का भी प्रयोग हुआ है जिनके कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं- . इल्लं- दक्खिणिल्लं, उवरिल्लं, उत्तरिल्लं, उवरिल्लं, दाहिणिल्लं, हेछिल्लं 8/176 इज्ज- आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे 1/15, इज्ज प्रत्यय का प्रयोग अभिनदिन्न 1/ 82 विशेषण के रूप में किया जाता है यह योग्यता का सूचक भी है यहाँ पर योग्यतावाची का ही प्रयोग हुआ है। इआ- बाहिरिआ 1/30 बाहर की ओर इय- अभितरियं 1/31 भीतर की ओर, एव्वसंगतियं 1/66 अओ- एगयओ 1/33 एक ओर से य- वेइयं 1/88 ग- कुंभगस्स- 8/156 त- गरुयत्तलहुयत्तं 6/4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160