Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन में ज्ञान, दर्शन और चारित्र की उपासना को महत्त्व दिया गया है। अण्डक नामक तृतीय अध्ययन में षट्काय जीव संरक्षण के साथ-साथ पशु-पक्षियों के जीवनदान के विषय को अधिक महत्त्व दिया गया है। कूर्म नामक चतुर्थ अध्ययन में संयत और असंयत के दृष्टान्त को सामने रखकर श्रमण एवं श्रमणियों को यह बोध दिया गया कि दीक्षा लेकर इन्द्रिय दमन को विशेष महत्त्व दे, तभी संसार सागर से पार होना संभव है। पंचम शैलक अध्ययन में दीक्षा की प्रधानता को दर्शाया गया है। तुम्बक नामक छठे अध्ययन में कर्म-सिद्धान्त की शिक्षा दी गयी है। रोहिणीज्ञात नामक सातवें अध्ययन में बहुओं का ससुर के प्रति आदर भाव, स्त्री शिक्षा, स्त्रियों का कृषिज्ञान आदि का बोध प्राप्त होता है। मल्ली नामक अध्ययन में मोक्ष की अवस्थाओं का आभास होता है। माकन्दी अध्ययन भोग वासना को धर्म में बाधक मानता है और उसे हेय बतलाते हुए सच्चे धर्म की आराधना पर बल देता है। चन्द्र नामक दसवें अध्ययन में गुणों की हानि और वृद्धि को दर्शाया गया है। दावद्रव नामक ग्यारहवें अध्ययन में देश विराधक, सर्व विराधक, देश आराधक और सर्व आराधक इन चार विकल्पों को धर्मोपदेश के लिए महत्त्वपूर्ण बतलाया गया है। उदक नामक बारहवें अध्ययन में द्रव्य के पर्याय और उसके गुण का गुणगान किया गया है। तेरहवें दर्दुरज्ञात नामक अध्ययन द्वारा चारित्र के परिणामों का बोध कराया गया है। तेतलिपुत्र नामक चौदहवें अध्ययन में श्रमण पर्याय में संलेखना का क्या महत्त्व है, उससे क्या प्राप्ति होती है और किस तरह घाती कर्म का घात करके जीव केवलदर्शन व केवलज्ञान को प्राप्त कर सकता है। इसकी विधिवत् शिक्षा दी गई है। नन्दीफल में वृक्षों के संरक्षण पर बल दिया गया है। द्रौपदी नामक अध्ययन के माध्यम से शील की शिक्षा दी गई है। आकीर्ण नामक अध्ययन में जीवन की अन्तिम परिणति का बोध कराया गया है। सुंसुमा नामक अध्ययन में मांस, रुधिर आदि के परित्याग का उपदेश दिया गया है और इसके अन्तिम पुंडरीक नामक अध्ययन में तीर्थ स्थापना को महत्त्व दिया गया है। ... इस तरह इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रत्येक कथानक का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य है जो समस्यामूलक, समाज सुधार आदि कारणों को भी प्रस्तुत करता है। कथाकार की अभिव्यक्ति एक विशेष दृष्टिकोण को लेकर ही आगे बढ़ी है, जो आज * के युग में भी सशक्त और सफल बनी हुई मानव समाज को प्रेरित करती है और आगे करती रहेगी। 1. जीवा बडढंति वा हायंति वा। ज्ञाताधर्मकथांग 10/4. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org