Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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________________ 102 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन में सन्तान के प्रति कर्तव्य क्या होता है? क्या नहीं? इसकी शिक्षा भी दी गयी है तथा यह निर्देशित किया गया है कि समाज में चाहे चोर हो या व्यापारी सभी को एक-दूसरे के काम में सहभागी बनाना चाहिए। समाज में मित्र एवं गणिका - आदि का क्या कर्तव्य होता है? क्या नहीं? इसका बोध अण्डक अध्ययन में कराया गया है। मल्ली नामक अध्ययन में साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति के साथ-साथ समाजीकरण का बोध अत्यन्त रोचक है। माकन्दी नामक अध्ययन से कथाकार ने व्यापारिक उद्देश्य को स्पष्ट किया है तथा इसी में परिवार के प्रमुख गुरु माता-पिता की आज्ञा न मानने के परिणाम को भी दर्शाया है। इसी तरह से कथाकार ने अपनी कथाओं में परिवार के विभिन्न चित्र उपस्थित किए हैं। तेतलीपुत्र नामक चौदहवें अध्ययन में बालिका के सम्पूर्ण जीवन को चित्रित करते हुए पोट्टिला को कुशल गृहणी तथा माता की संज्ञा से विभूषित किया गया है। पोट्टिला पुत्र की तरह राज्य को भी सुरक्षित रखती है परन्तु वही पोट्टिला अपने प्रियतम के लिए प्रिय होते हुए भी अप्रिय बन जाती है। ऐसे कई पारिवारिक विचार, मनमुटाव आदि इन कथाओं में समाहित हैं। आत्मघात जैसे क्रूर दृश्य भी इन कथाओं में हैं।३ .. 11. साहस निरूपण ___ ज्ञाताधर्म की कथाओं में साहसिक कार्य करने की अपूर्व क्षमता को भी दर्शाया गया है। विपत्ति के समय में अभयकुमार द्वारा माता धारिणी के दोहद की रक्षा करना महान साहसिक कार्य है। अभयकुमार का कला ज्ञान एवं प्राप्त शिक्षा जगत-प्रसिद्ध है। वह औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा, पारिणमिकी बुद्धि का धनी था, फलत: वह सभी प्रकार की समस्याओं का तत्काल समाधान करता था और मान-सम्मान से गौरवान्वित होता था।५ रोहिणी उस समय आश्चर्य को उत्पन्न कर देती है जब उसके ससुर उससे पाँच धान्य कण मांगते हैं, वह उस समय विनम्र भाव से कहती है हे तात! मुझे वाहन दें जिस पर लादकर मैं उन पाँच धान्य कण को लौटा सकू।६ महाबल की तपस्या का क्रम महान पुरुषार्थ की ओर संकेत करता है। महाबल सिंह की तपस्या के समान ही सिंह भी तप करता है, जिससे वह अत्यन्त तेजस्वी बन जाता है। 1. ज्ञाताधर्मकथांग 2/39. 3. वही, 14/49. 5. वही, 1/15. 7. वही, 8/15 से 23. 2. वही, 9/5. 4. वही, 1/69. 6. वही, 7/28. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org